Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 118
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-६३२ गेय के तीन आकार हैं, वे इस प्रकार हैं-मंद स्वर से आरम्भ करे । मध्य में स्वर की वृद्धि करे । अन्त में क्रमश: हीन करे। सूत्र - ६३३ गेय के छः दोष, आठ गुण, तीन वृत्त और दो भणितियाँ इनको जो सम्यक् प्रकार से जानता है वह सुशिक्षित रंग (नाट्य शाला) में गा सकता है। सूत्र-६३४ हे गायक! इन छ: दोषों को टालकर गाना । भयभीत होकर गाना, शीघ्रतापूर्वक गाना, संक्षिप्त करके गाना, तालबद्ध न गाना, काकस्वर से गाना, नाक से उच्चारण करते गाना। सूत्र - ६३५ गेय के आठ गुण हैं । यथा-पूर्ण, रक्त, अलंकृत, व्यक्त, अविस्वर, मधुर, स्वर, सुकुमार । सूत्र- ६३६ गेय के ये गुण और हैं । यथा-उरविशुद्ध, कंठविशुद्ध और शिरोविशुद्ध जो गाया जाए । मृदु और गम्भीर स्वर से गाया जाए। तालबद्ध और प्रतिक्षेपबद्ध गाया जाए । सात स्वरों से सम गाया जाए। सूत्र-६३७ गेय के ये आठ गुण और हैं । निर्दोष, सारयुक्त, हेतुयुक्त, अलंकृत, उपसंहारयुक्त, सोत्प्रास, मित, मधुर । सूत्र- ६३८ तीन वृत हैं-सम, अर्ध सम, सर्वत्र विषम । सूत्र - ६३९ दो भणितियाँ हैं, यथा-संस्कृत और प्राकृत । इन दो भाषाओं को ऋषियों ने प्रशस्त मानी हैं और इन दो भाषाओं में ही गाया जाता है। सूत्र - ६४० मधुर कौन गाती है ? खर स्वर से कौन गाती है ? रुक्ष स्वर से कौन गाती है ? दक्षतापूर्वक कौन गाती है ? मन्द स्वर से कौन गाती है ? शीघ्रतापूर्वक कौन गाती है ? विस्वर (विरुद्ध स्वर) से कौन गाती है ? निम्नोक्त क्रम से जानना। सूत्र-६४१ श्यामा (किंचित् काली) स्त्री । काली (धन के समान श्याम रंग वाली) । काली । गौरी (गौरवर्ण वाली) । काणी अंधी। पिंगला-भूरे वर्ण वाली। सूत्र-६४२ सात प्रकार से सम होता है, यथा-तंत्रीसम, तालसम, पादसम, लयसम, ग्रहसम, श्वासोच्छ्वाससम, संचार सम। सूत्र- ६४३ सात स्वर, तीन ग्राम, इक्कीस मूर्छना और उनचास तान हैं। सूत्र-६४४ कायक्लेश सात प्रकार का कहा गया है, यथा-स्थानातिग-कायोत्सर्ग करने वाला । उत्कटुकासनिक-उकडु बैठने वाला । प्रतिमास्थायी-भिक्षु प्रतिमा का वहन करने वाला । वीरासनिक-सिंहासन पर बैठने वाले के समान बैठना । नैषधिक-पैर आदि स्थिर करके बैठना । दंडायतिक-दण्ड के समान पैर फैलाकर बैठना । लगंड-शायी-वक्र काष्ठ के समान-भूमि से पीठ ऊंची रखकर सोने वाला। सूत्र- ६४५ जम्बूद्वीप में सात वर्ष (क्षेत्र) कहे गए हैं, यथा-भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्वर्ष, महाविदेह मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 118

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