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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- ९६७, ९६८
___ दशा दस हैं, यथा-कर्मविपाक दशा, उपासक दशा, अंतकृद् दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, आचार दशा, प्रश्नव्याकरण दशा, बंध दशा, दोगृद्धि दशा, दीर्घ दशा, संक्षेपित दशा । कर्म विपाक दशा के दश अध्ययन हैं, यथामृगापुत्र, गोत्रास, अण्ड, शकट, ब्राह्मण, नंदिसेण, नैरयिक, सौरिक, उदुंबर, सहसोदाह-अमरक, लिच्छवी कुमार। सूत्र-९६९,९७०
उपासक दशा के दस अध्ययन हैं, यथा- आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशतक, कुण्डकोलिक, शकडालपुत्र, महाशतक, नंदिनीपिता, सालेयिका पिता। सूत्र- ९७१, ९७२
अन्तकृद्दशा के दस अध्ययन हैं, यथा- नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकर्म, पल्यंक और अंबडपुत्र। सूत्र- ९७३, ९७४
अनुत्तरोपपातिक दशा के दस अध्ययन हैं, यथा- ऋषिदास, धन्ना, सुनक्षत्र, कार्तिक, संस्थान, शालिभद्र, आनन्द, तेतली, दशार्णभद्र और अतिमुक्त। सूत्र - ९७५
आचारदशा (दशा श्रुतस्कंध) के दस अध्ययन हैं, यथा-बीस असमाधि स्थान, इक्कीस शबल दोष, तैंतीस आशातना, आठ गणिसम्पदा, दस चित्त समाधि स्थान, ग्यारह श्रावक प्रतिमा, बारह भिक्षु प्रतिमा, पर्युषण कल्प, तीस मोहनीय स्थान, आजाति स्थान ।
प्रश्न व्याकरण दशा के दस अध्ययन हैं, यथा-उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, आचार्य भाषित, महावीर भाषित, क्षौमिकप्रश्न, कोमलप्रश्न, आदर्शप्रश्न, अंगुष्ठप्रश्न, बाहुप्रश्न ।
बन्ध दशा के दस अध्ययन हैं, यथा-बन्ध, मोक्ष, देवर्धि, दशारमंडलिक, आचार्य विप्रतिपत्ति, उपाध्यायविप्रतिपत्ति, भावना, विमुक्ति, शाश्वत, कर्म ।
द्विगृद्धि दशा के दस अध्ययन हैं, यथा-वात, विवात, उपपात, सुक्षेत्र कृष्ण, बयालीस स्वप्न, तीस महास्वप्न, बहत्तर स्वप्न, हार, राम, गुप्त ।
दीर्घ दशा के दस अध्ययन हैं । यथा-चन्द्र, सूर्य, शुक्र, श्री देवी, प्रभावती, द्वीप समुद्रोपपत्ति, बहुपत्रिका, मंदर, स्थविर संभूतविजय, स्थविरपद्म उश्वासनिश्वास।
संक्षेपिक दशा के दस अध्ययन हैं, क्षुल्लिका विमान प्रविभक्ति, महती विमान प्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका, विवाहचूलिका, अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुलोपपात, वेलंधरोपपात, वैश्रमणोपपात । सूत्र-९७६
दस सागरोपम क्रोड़ाक्रोड़ी प्रमाण उत्सर्पिणीकाल है । दस सागरोपम क्रोड़ाक्रोड़ी प्रमाण अवसर्पिणीकाल हैं सूत्र- ९७७
नैरयिक दस प्रकार के हैं, यथा-अनन्तरोपपन्नक, परंपरोपपन्नक, अनन्तरावगाढ़, परंपरावगाढ़, अनन्तराहारक, परंपराहारक, अनन्तर पर्याप्त, परम्पर पर्याप्त, चरिम, अचरिम । इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त सभी दस प्रकार के हैं।
चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में दस लाख नरकावास हैं । रत्नप्रभा पृथ्वी में नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है । चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है । पाँचवी धूमप्रभा पृथ्वी में नैरयिकों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम की है।
असुरकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है। इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त दस हजार वर्ष की स्थिति है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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