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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-९८५
दश लक्षणों से पूर्ण दुषम काल जाना जाता है, यथा-अकाल में वर्षा हो, काल में वर्षा न हो, असाधु की पूजा हो, साधु की पूजा न हो, माता पिता आदि का विनय न करे, अमनोज्ञ शब्द यावत् स्पर्श ।
दश कारणों से पूर्ण सुषमकाल जाना जाता है, यथा-अकाल में वर्षा न हो, शेष पूर्व कथित से विपरीत यावत् मनोज्ञ स्पर्श। सूत्र- ९८६
सुषम-सुषम काल में दश कल्पवृक्ष युगलियाओं के उपभोग के लिए शीघ्र उत्पन्न होते हैं । यथासूत्र - ९८७
मत्तांगक-स्वादु पेय की पूर्ति करने वाले, भृतांग-अनेक प्रकार के भाजनों की पूर्ति करने वाले, तूर्यांग-वाद्यों की पूर्ति करने वाले, दीपांग-सूर्य के अभाव में दीपक के समान प्रकाश देने वाले, ज्योतिरंग-सूर्य और चन्द्र के समान प्रकाश देने वाले, चित्रांग-विचित्र पुष्प देने वाले, चित्र रसांग-विविध प्रकार के भोजन देने वाले, मण्यंग-मणि, रत्न आदि आभूषण देने वाले, गृहाकार-घर के समान स्थान देने वाले, अनग्न-वस्त्रादि की पूर्ति करने वाले। सूत्र- ९८८
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी में दश कुलकर थे, यथासूत्र - ९८९
शतंजल, शतायु, अनन्तसेन, अजितसेन, कर्कसेन, भीमसेन, महाभीमसेन, दढ़रथ, दशरथ, शतरथ । सूत्र-९९०
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामि उत्सर्पिणी में दश कुलकर होंगे, यथा-सिमंकर, सिमंधर,क्षेमंकर, क्षेमंधर, विमलवाहन, संभूति, पडिशत्रु, दृढधनु, दशधनु और शतधनु । सूत्र- ९९१
जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व में शीता महानदी के दोनों किनारों पर दश वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा-माल्य-वन्त, चित्रकूट, विचित्रकूट, ब्रह्मकूट यावत् सोमनस । जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर दश वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा-विद्युत्प्रभ यावत् गंधमादन । इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में भी दश वक्षस्कार पर्वत हैं यावत् पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में भी दश वक्षस्कार पर्वत हैं। सूत्र - ९९२
दश कल्प इन्द्र वाले हैं, यथा-सौधर्म यावत् सहस्त्रार, प्राणत, अच्युत । इन दश कल्पों में दश इन्द्र हैं, यथाशक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र यावत् अच्युतेन्द्र।
इन दश इन्द्रों के दश पारियानिक विमान हैं । यथा-पालक, पुष्पक यावत् विमलवर और सर्वतोभद्र । सूत्र - ९९३
दशमिका भिक्षु प्रतिमा की एक सौ दिन से और ५५० भिक्षा (दत्ति) से सूत्रानुसार यावत् आराधना होती है। सूत्र-९९४
संसारी जीव दश प्रकार के हैं, यथा-प्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय, अप्रथम समयोत्पन्न एकेन्द्रिय यावत् अप्रथम समयोत्पन्न पंचेन्द्रिय । सर्व जीव दश प्रकार के हैं, यथा-पृथ्वीकाय यावत् वनस्पतिकाय, बेइन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय, अनिन्द्रिय।
सर्व जीव दश प्रकार के हैं, प्रथम समयोत्पन्न नैरयिक, अप्रथम समयोत्पन्न नैरयिक, अप्रथम समयोत्पन्न देव, प्रथम समयोत्पन्न सिद्ध, अप्रथम समयोत्पन्न सिद्ध । सूत्र-९९५
सौ वर्ष की आयु वाले पुरुष की दश दशाएं हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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