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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक अति जागने से, मल का वेग रोकने से, मूत्र का वेग रोकने से, अति चलने से, प्रतिकूल भोजन करने से, कामवेग को रोकने से। सूत्र- ८०७
दर्शनावरणीय कर्म नौ प्रकार का है, यथा-निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धी, चक्षुदर्शना वरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण । सूत्र-८०८
अभिजित् नक्षत्र कुछ अधिक नौ मुहूर्त चन्द्र के साथ योग करते हैं।
अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्र के साथ उत्तर से योग करते हैं, यथा-अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, यावत् भरणी सूत्र-८०९
इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सम भूभाग से नवसौ योजन की ऊंचाई पर ऊपर का तारामण्डल गति करता है। सूत्र-८१०
जम्बूद्वीप में नौ योजन के मच्छ प्रवेश करते थे, करते हैं और करेंगे। सूत्र-८११, ८१२
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में, इस अवसर्पिणी में ये नौ बलदेव और नौ वासुदेव के पिता थे । यथा- प्रजापती, ब्रह्म, रुद्र, सोम, शिव, महासिंह, अग्निसिंह, दशरथ और वासुदेव । सूत्र-८१३
यहाँ से आगे समवायांग सूत्र के अनुसार यावत् एक नवमा बलदेव ब्रह्मलोक कल्प से च्यवकर एक भव करके मोक्ष में जावेंगे-पर्यन्त कहना चाहिए । जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में नौ बलदेव और नौ वासुदेव के पिता होंगे, माताएं होंगी-शेष समवायाङ्ग के अनुसार यावत्-महा भीमसेन सुग्रीव पर्यन्त कहना चाहिए। सूत्र-८१४
कीर्तिमान् वासुदेवों के शत्रु प्रतिवासुदेव जो सभी चक्र से युद्ध करने वाले हैं और स्वचक्र से ही मरने वाले हैं सूत्र-८१५, ८१६
प्रत्येक चक्रवर्ती की नौ महानिधियाँ हैं, और प्रत्येक महानिधि नौ नौ योजन की चौड़ी हैं । यथा- नैसर्प, पाँडुक, पिंगल, सर्वरत्न, महापद्म, काल, महाकाल, माणवक और शंख । सूत्र-८१७
नैसर्प महानिधि-इनके प्रभाव से निवेश, ग्राम, आकर, नगर, पट्टण, द्रोणमुख, मडंब, स्कंधावार और घरों का निर्माण होता है। सूत्र-८१८
पांडुक महानिधि-इसके प्रभाव से गिनने योग्य वस्तुएं तथा-मोहर आदि सिक्के, मापने योग्य वस्तुएं वस्त्र आदि, तोलने योग्य वस्तुएं-धान्य आदि की उत्पत्ति होती है। सूत्र- ८१९
पिंगल महानिधि-इसके प्रभाव से पुरुषों, स्त्रियों, हाथियों या घोड़ों के आभूषणों की उत्पत्ति होती है। सूत्र- ८२०
सर्वरत्न महानिधि-इसके प्रभाव से चौदह रत्नों की उत्पत्ति होती है। सूत्र-८२१
महापद्म महानिधि-इसके प्रभाव से सर्व प्रकार के रंगेहए या श्वेत वस्त्रों की उत्पत्ति होती है। सूत्र-८२२
काल महानिधि-काल, शिल्प, कृषि का ज्ञान उत्पन्न होता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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