Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 145
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-९०१ ___ आकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का है, यथा-उल्कापात-आकाश से प्रकाश पुंज का गिरना । दिशादाह-महानगर के दाह के समान आकाश में प्रकाश का दिखाई देना । गर्जना-आकाश में गर्जना होना । विद्युतअकाल में विद्युत चमकना । निर्घात-आकाश में व्यन्तर देव कृत महाध्वनि अथवा भूकम्प की ध्वनि । जूयग-संध्या और चन्द्रप्रभा का मिलना । यक्षादीप्त-आकाश में यक्ष के प्रभाव से जाज्वल्यमान अग्नि का दिखाई देना । धूमिकाधूएं जैसे वर्ण वाली सूक्ष्मवृष्टि । मिहिका-शरद् काल में होने वाली सूक्ष्म वर्षा अर्थात् ओस गिरना, रजघात -चारों दिशा में सूक्ष्म रज की वृष्टि । औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का है, यथा-अस्थि, माँस, रक्त, अशुचि के समीप, स्मशान के समीप, चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, पतन-राजा, मंत्री, सेनापति या ग्रामाधिपति आदि का मरण, राजविग्रह-युद्ध, उपाश्रय में मनुष्य आदि का मृत शरीर पड़ा हो तो सौ हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय क्षेत्र है। सूत्र - ९०२ पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वाले को दस प्रकार का संयम होता है । यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का सुख नष्ट नहीं होता । श्रोत्रेन्द्रिय का दुःख प्राप्त नहीं होता यावत्-स्पर्शेन्द्रिय का दुःख प्राप्त नहीं होता। इसी प्रकार दस प्रकार का असंयम भी कहना चाहिए। सूत्र- ९०३ सूक्ष्म दस प्रकार के हैं, यथा-प्राण सूक्ष्म-कुंथुआ आदि । पनक सूक्ष्म-फूलण आदि । बीज सूक्ष्म-डांगर आदि का अग्र भाग । हरित सूक्ष्म-सूक्ष्म हरी घास । पुष्प सूक्ष्म-वड आदि के पुष्प । अंडसूक्ष्म-कीड़ी आदि के अण्डे । लयनसूक्ष्म-कीड़ी नगरादि । स्नेह सूक्ष्म-धुंअर आदि । गणित सूक्ष्म-सूक्ष्म बुद्धि के गहन गणित करना । भंग सूक्ष्मसूक्ष्म बुद्धि से गहन भांगे बनाना। सूत्र-९०४ जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में गंगा और सिन्धु महानदी में दस महानदियाँ मिलती हैं । यथा-गंगा नदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ-यमुना, सरयू, आवी, कोशी, मही। सिन्धु नदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ-शतद्रु, विवत्सा, विभासा, एरावती, चन्द्रभागा। जम्बूद्वीप के मेरु से उत्तर दिशा में रक्ता और रक्तवती महानदी में दस महानदियाँ मिलती हैं, यथा-कृष्णा, महाकृष्णा, नीला, महानीला, तीरा, महातीरा, इन्द्रा, इन्द्रषेणा, वारिषेणा, महाभोगा। सूत्र-९०५,९०६ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में दस राजधानियाँ हैं, यथा- चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, हस्तिनापुर, कांपिल्यपुर, मिथिला, कोशाम्बी, राजगृह । सूत्र-९०७ इन दस राजधानियों में दश राजा मुण्डित यावत्-प्रव्रजित हुए, यथा-भरत, सगर, मधव, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, महापद्म, हरिषेण, जयनाथ । सूत्र-९०८ जम्बूद्वीप का मेरु पर्वत भूमि में दस सौ (एक हजार) योजन गहरा है। भूमि पर दस हजार योजन चौड़ा है। ऊपर से दस सौ (एक हजार) योजन चौड़ा है । दस-दस हजार (एक लाख) योजन के सम्पूर्ण मेरु पर्वत हैं। सूत्र - ९०९ जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के मध्यभाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर और नीचे के लघु प्रतर में आठ प्रदेश वाला रुचक है वहाँ से इन दश दिशाओं का उद्गम होता है । यथा-पूर्व, पूर्वदक्षिण, दक्षिण, दक्षिणपश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, उर्ध्व, अधो । इन दस दिशाओं के दस नाम हैं, यथा मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 145

Loading...

Page Navigation
1 ... 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158