Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 149
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र - ३, 'स्थान' स्थान / उद्देश / सूत्रांक मार्ग में उन्मार्ग की बुद्धि, अजीव में जीव की बुद्धि, जीव में अजीव की बुद्धि, असाधु में साधु की बुद्धि, साधु में असाधु बुद्धि, अमूर्त में मूर्त की बुद्धि, मूर्त में अमूर्त की बुद्धि । सूत्र - ९३० चन्द्रप्रभ अर्हन्त दश लाख पूर्व का पूर्णायु भोगकर सिद्ध यावत् मुक्त हुए । धर्मनाथ अर्हन्त दश लाख वर्ष का पूर्णायु भोगकर सिद्ध यावत् मुक्त हुए । नमिनाथ अर्हन्त दश हजार वर्ष का पूर्णायु भोगकर सिद्ध यावत् मुक्त हुए । पुरुषसिंह वासुदेव दश लाख वर्ष का पूर्णायु भोगकर छट्ठी तमा पृथ्वी में नैरयिक रूप में उत्पन्न हुए । मनाथ अर्हन्त दश धनुष के ऊंचे थे और दश सौ (एक हजार) वर्ष का पूर्णायु भोगकर सिद्ध यावत् मुक्त हुए कृष्ण वासुदेव दश धनुष के ऊंचे थे और दश सौ (एक हजार) वर्ष का पूर्णायु भोगकर तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप में उत्पन्न हुए । सूत्र - ९३१, ९३२ भवनवासी देव दश प्रकार के हैं, यथा-असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार इन दश प्रकार के भवनवासी देवों के दश चैत्यवृक्ष हैं, यथा- अश्वत्थ- पीपल, सप्तपर्ण, शाल्मली, उदुम्बर, शिरीष, दधिपर्ण, वंजुल, पलाश, वप्र, कणेरवृक्ष सूत्र - ९३३, ९३४ सुख दस प्रकार का है, यथा- आरोग्य, दीर्घायु, धनाढ्य होना, ईच्छित शब्द और रूप का प्राप्त होना, ईच्छित गंध, रस और स्पर्श का प्राप्त होना, सन्तोष, जब जिस वस्तु की आवश्यकता हो, उस समय उस वस्तु का प्राप्त होना, शुभ भोग प्राप्त होना, निष्क्रमण-दीक्षा, अनाबाध-मोक्ष | सूत्र - ९३५ उपघात दस प्रकार का है, यथा- उद्गमउपघात, उत्पादनउपघात शेष पाँचवे स्थान के समान यावत्परिहरणउपघात, ज्ञानोपघात, दर्शनोपघात, चारित्रोपघात, अप्रीतिकोपघात, संरक्षणोपघात । विशुद्धि दस प्रकार की है, उद्गमविशुद्धि, उत्पादनविशुद्धि यावत् संरक्षण विशुद्धि । सूत्र - ९३६ मन संक्लेश दस प्रकार का है, यथा- उपधि संक्लेश, उपाश्रय संक्लेश, कषाय संक्लेश, भक्तपाण संक्लेश, संक्लेश, वचन संक्लेश, काय संक्लेश, ज्ञान संक्लेश, दर्शन संक्लेश और चारित्र संक्लेश । असंक्लेश दस प्रकार का है, यथा- उपधि असंक्लेश यावत् चारित्र असंक्लेश । सूत्र- ९३७ बल दस प्रकार के हैं, यथा श्रोत्रेन्द्रिय बल यावत् स्पर्शेन्द्रिय बल, ज्ञान बल, दर्शन बल, चारित्र बल, वीर्य बल । सूत्र - ९३८, ९३९ सत्य दस प्रकार के हैं, यथा- जनपद सत्य- देश की अपेक्षा से सत्य, सम्मत सत्य- सब का सम्मत सत्य, स्थापना सत्य-लकड़ों के घोड़े की स्थापना, नाम सत्य - एक दरिद्री का धनराज नाम, रूप सत्य- एक कपटी का साधुवेष, प्रतीत्यसत्य-कनिष्ठा की अपेक्षा अनामिका का दीर्घ होना, और मध्यमा की अपेक्षा अनामिका का लघु होना व्यवहार सत्य-पर्वत में तृण जलते हैं फिर भी पर्वत जल रहा है ऐसा कहना । भाव सत्य-बक में प्रधान श्वेत वर्ण है अतः बक को श्वेत कहना । योग सत्य- दंड हाथ में होने से दण्डी कहना । औपम्य सत्य- यह कन्या चन्द्रमुखी है। सूत्र - ९४०, ९४१ मृषावाद दस प्रकार का है, यथा- क्रोधजन्य, मानजन्य, मायाजन्य, लोभजन्य, प्रेमजन्य, द्वेषजन्य, हास्यजन्य, भयजन्य, आख्यायिकाजन्य, उपघातजन्य । सूत्र - ९४२ सत्यमृषा (मिश्र वचन) दस प्रकार का है, यथा- उत्पन्न मिश्रक- सही संख्या मालूम न होने पर भी इस शहर में दस बच्चे पैदा हुए हैं ऐसा कहना। विगत मिश्रक जन्म के समान मरण के सम्बन्ध में कहना उत्पन्न विगत मिश्रक मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद” Page 149

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