Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 147
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक भाविताभावित-यथा-अन्य द्रव्य के संसर्ग से प्रभावित-भावित कहा जाता है और अन्य द्रव्य के संसर्ग से अप्रभावित अभावित कहा जाता है-इस प्रकार द्रव्यों का चिन्तन किया जाता है । बाह्याबाह्य-बाह्य द्रव्य और अबाह्य द्रव्यों का चिन्तन । शाश्वताशाश्वत-शाश्वत और अशाश्वत द्रव्यों का चिन्तन । तथाज्ञान-सम्यग्दृष्टि जीवों का जो यथार्थ ज्ञान है वह तथाज्ञान है । अतथाज्ञान-मिथ्यादृष्टि जीवों का जो एकान्त ज्ञान है वह अतथाज्ञान है। सूत्र-९१९ असुरेन्द्र चमर का तिगिच्छा कूट उत्पात पर्वत मूल में दस-सौ बाईस (१०२२) योजन चौड़ा है। असुरेन्द्र चमर के सोम लोकपाल का सोमप्रभ उत्पाद पर्वत दस सौ (एक हजार) योजन का ऊंचा है, दस सौ (एक हजार) गाऊ का भूमि में गहरा है, मूल में (भूमि पर) दस सौ (एक हजार) योजन का चौड़ा है । असुरेन्द्र चमर के यम-लोकपाल का यमप्रभ उत्पात पर्वत का प्रमाण भी पूर्ववत् है। इसी प्रकार वरुण के उत्पात पर्वत का प्रमाण है । इसी प्रकार वैश्रमण के उत्पात पर्वत का प्रमाण है। वैरोचनेन्द्र बलि का रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत मूल में दस सौ बाईस (१०२२) योजन चौड़ा है। जिस प्रकार चमरेन्द्र के लोकपालों के उत्पात पर्वतों का प्रमाण कहा है उसी प्रकार बलि के लोकपालों के उत्पात पर्वतों का प्रमाण कहना चाहिए। नागकुमारेन्द्र धरण का धरणप्रभ उत्पात पर्वत दस सौ (एक हजार) योजन ऊंचा है, दस सौ (एक हजार) गाऊ का भूमि में गहरा है, मूल में एक हजार योजन चौड़ा है। इसी प्रकार धरण के कालवाल आदि लोकपालों के उत्पात पर्वतों का प्रमाण है । इसी प्रकार भूतानन्द और उनके लोकपालों के उत्पात पर्वतों का प्रमाण है । इसी प्रकार लोकपाल सहित स्तनित कुमार पर्यन्त उत्पात पर्वतों का प्रमाण कहना चाहिए । असुरेन्द्रों और लोकपालों के नामों के समान उत्पात पर्वतों के नाम कहने चाहिए। देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र का शक्रप्रभ उत्पात पर्वत दस हजार योजन ऊंचा है । दस हजार गाऊ भूमि में गहरा है मूल में दस हजार योजन चौड़ा है। इसी प्रकार शक्रेन्द्र के लोकपालों के उत्पात पर्वतों का प्रमाण है। इसी प्रकार अच्युत पर्यन्त सभी इन्द्रों और लोकपालों के उत्पात पर्वतों का प्रमाण है। सूत्र- ९२० बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (एक हजार) योजन की है। जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना दश सौ (एक हजार) योजन की है। स्थलचर उरपरिसर्प तिर्यंच पंचेन्द्रिय की उत्कृष्ट अवगाहना भी इतनी ही है। सूत्र- ९२१ संभवनाथ अर्हन्त की मुक्ति के पश्चात् दश लाख क्रोड़ सागरोपम व्यतीत होने पर अभिनन्दन अर्हन्त उत्पन्न हुए सूत्र - ९२२ अनन्तक दश प्रकार के हैं, यथा-नाम अनन्तक-सचित्त या अचित्त वस्तु का अनन्तक नाम । स्थापना अनन्तक-अक्ष आदि में किसी पदार्थ में अनन्त की स्थापना । द्रव्य अनन्तक-जीव द्रव्य या पुद्गल द्रव्य का अनन्त पना । गणना-अनन्तक एक, दो, तीन इसी प्रकार संख्यात, असंख्यात और अनन्त पर्यन्त गिनती करना । प्रदेश अनन्तक-आकाश प्रदेशों का अनन्तपना । एकतोऽनन्तक-अतीत काल अथवा अनागत काल । द्विधा-अनन्तकसर्वकाल । देश विस्तारानन्तक-एक आकाश प्रत्तर । सर्व विस्तारानन्तक-सर्व आकाशास्तिकाय । शाश्वतानन्तकअक्षय जीवादि द्रव्य । सूत्र- ९२३ उत्पाद पूर्व के दश वस्तु (अध्ययन) हैं । अस्तिनास्ति प्रवादपूर्व के दश चूल वस्तु (लघु अध्ययन) हैं। सूत्र- ९२४ प्रतिसेवना (प्राणातिपात आदि पापों का सेवन) दश प्रकार की हैं । यथा मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 147

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