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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-८९४
संयम दश प्रकार का है, यथा-पृथ्वीकायिक जीवों का संयम यावत्-वनस्पतिकायिक जीवों का संयम, बेइन्द्रिय जीवों का संयम, तेइन्द्रिय जीवों का संयम, चउरिन्द्रिय जीवों का संयम, पंचेन्द्रिय जीवों का संयम, अजीव काय संयम।
असंयम दश प्रकार का है, यथा-पृथ्वीकायिक जीवों का असंयम यावत्-वनस्पतिकायिक जीवों का असंयम, बेइन्द्रिय जीवों का असंयम यावत्-पंचेन्द्रिय जीवों का असंयम और अजीवकायिक असंयम ।
संवर दस प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय संवर यावत्-स्पर्शेन्द्रिय संवर, मनसंवर, वचनसंवर, कायसंवर, उपकरणसंवर और शुचिकुशाग्रसंवर।
असंवर दस प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय असंवर यावत्-स्पर्शेन्द्रिय असंवर, मन असंवर, वचन असंवर, काय असंवर, उपकरण असंवर और शुचिकुशाग्र असंवर । सूत्र-८९५
दस कारणों से मनुष्य को अभिमान उत्पन्न होता है, यथा-जातिमद से, कुलमद से यावत्-ऐश्वर्यमद से, नागकुमार देव या सुपर्णकुमार देव मेरे समीप शीघ्र आते हैं इस प्रकार के मद से, सामान्य पुरुष को जिस प्रकार का अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उससे श्रेष्ठ अवधिज्ञान और दर्शन मुझे उत्पन्न हुआ है इस प्रकार के मद से। सूत्र-८९६
समाधि दस प्रकार की है, यथा-प्राणातिपात से विरत होना, मृषावाद से विरत होना, अदत्तादान से विरत होना, मैथुन से विरत होना, परिग्रह से विरत होना, ईर्यासमिति से, भाषा समिति से, एषणा समिति से, आदान भाण्ड मात्र निक्षेपणा समिति से, उच्चार प्रश्रवण श्लेष्म सिंधाण परिस्थापनिका समिति से समाधि होती है।
असमाधि दस प्रकार की है, यथा-प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह, ईर्या असमिति-यावत्-उच्चारप्रश्रवणश्लेष्मसिंधाणपरिस्थापनिका असमिति । सूत्र-८९७,८९८
प्रव्रज्या दस प्रकार की है, यथा
छन्द से-गोविन्द वाचक के समान स्वेच्छा से दीक्षा ले । रोष से-शिवभूति के समान रोष से दीक्षा ले । दरिद्रता से-कठिआरे के समान दरिद्रता से दीक्षा ले । स्वप्न से-पुष्पचूला के समान स्वप्नदर्शन से दीक्षा ले । प्रतिज्ञा लेने सेधन्नाजी के समान प्रतिज्ञा लेने से दीक्षा ले । स्मरण से भगवान मल्लिनाथ के छः मित्रों के समान पूर्वभव के स्मरण से दीक्षा ले । रोग होने से सनत्कुमार चक्रवर्ती के समान रोग होने से दीक्षा ले । अनादर से-नंदीषेण के समान अनादर से दीक्षा ले । देवता के उपदेश से मेतार्य के समान देवता के उपदेश से दीक्षा ले । पुत्र के स्नेह से-वज्रस्वामी की माताजी के समान पुत्र स्नेह से दीक्षा ले। सूत्र-८९९
श्रमण धर्म दस प्रकार का है, यथा-क्षमा, निर्लोभता, सरलता, मृदुता, लघुता, सत्य, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य
वैयावृत्य दस प्रकार की है, यथा-आचार्य की वैयावृत्य, उपाध्याय की वैयावृत्य, स्थविर साधुओं की वैयावृत्य, तपस्वी की वैयावृत्य, ग्लान की वैयावृत्य, शैक्ष की वैयावृत्य, कुल की वैयावृत्य, गण की वैयावृत्य, चतुर्विध संघ की वैयावृत्य, साधर्मिक की वैयावृत्य । सूत्र- ९००
जीव परिणाम दस प्रकार के हैं, यथा-गति परिणाम, इन्द्रिय परिणाम, कषाय परिणाम, लेश्या परिणाम, योग परिणाम, उपयोग परिणाम, ज्ञान परिणाम, दर्शन परिणाम, चारित्र परिणाम, वेद परिणाम।
अजीव परिणाम दस प्रकार के हैं, यथा-बन्धन परिणाम, गति परिणाम, संस्थान परिणाम, भेद परिणाम, वर्ण परिणाम, रस परिणाम, गंध परिणाम, स्पर्श परिणाम, अगुरु लघु परिणाम, शब्द परिणाम ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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