________________
आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-८२३
महाकाल महानिधि-इसके प्रभाव से लोहा, चाँदी, सोना, मणी, मोती, स्फटिकशिला और प्रवाल आदि के खानों की उत्पत्ति होती है। सूत्र-८२४
माणवक महानिधि-इसके प्रभाव से योद्धा, शस्त्र, बख्तर, युद्धनीति और दंडनीति की उत्पत्ति होती है। सूत्र-८२५
शंख महानिधि-इसके प्रभाव से नाट्यविधि, नाटकविधि और चार प्रकार के काव्यों की तथा मृदंगादि वाद्यों की उत्पत्ति होती है। सूत्र- ८२६
ये नौ महानिधियाँ आठ-आठ चक्र पर प्रतिष्ठित हैं-आठ-आठ योजन ऊंची हैं, नौ नौ योजन के चौड़े हैं और बारह योजन लम्बे हैं, इनका आकार पेटी के समान है। ये सब गंगा नदी के आगे स्थित हैं। सूत्र- ८२७
ये स्वर्ण के बने हुए और वैडूर्यमणि के द्वार वाले हैं, अनेक रत्नों से परिपूर्ण हैं । इन सब पर चन्द्र-सूर्य के समान गोल चक्र के चिन्ह हैं। सूत्र-८२८
इन निधियों के नाम वाले तथा पल्यस्थिति वाले देवता इन निधियों के अधिपति हैं। सूत्र-८२९
किन्तु इन निधियों से उत्पन्न वस्तुएं देने का अधिकार नहीं है, ये सभी महानिधियाँ चक्रवर्ती के अधीन होती हैं सूत्र-८३०
विकृतियाँ (विकार के हेतुभूत) नौ प्रकार की हैं, यथा-दूध, दही, मक्खन, घृत, तेल, गुड़, मधु, मद्य, माँस । सूत्र-८३१
औदारिक शरीर के नौ छिद्रों से मल नीकलता है, यथा-दो कान, दो नेत्र, दो नाक, मुख, मूत्रस्थान, गुदा। सूत्र-८३२
पुण्य नौ प्रकार के होते हैं, अन्नपुण्य, पानपुण्य, लयनपुण्य, शयनपुण्य, वस्त्रपुण्य, मनपुण्य, वचनपुण्य, कायापुण्य, नमस्कारपुण्य । सूत्र-८३३
पाप के स्थान नौ प्रकार के हैं, यथा-प्राणातिपात, मृषावाद यावत् परिग्रह और क्रोध, मान, माया और लोभ। सूत्र-८३४
पाप श्रुत नौ प्रकार के हैं, यथासूत्र - ८३५
उत्पात, निमित्त, मंत्र, आख्यायक, चिकित्सा, कला, आकरण, अज्ञान, मिथ्याप्रवचन । सूत्र-८३६
नैपुणिक वस्तु नौ हैं, यथा-संख्यान-गणित में निपुण, निमित्त-त्रैकालिक शुभाशुभ बताने वाले ग्रन्थों में निपुण, कायिक-स्वर शास्त्रों में निपुण, पुराण-अठारह पुराणों में निपुण, परहस्तक-सर्व कार्य में निपुण, प्रकृष्ट पंडितअनेक शास्त्रों में निपुण, वादी-वाद में निपुण, भूति कर्म-मंत्र शास्त्रों में निपुण, चिकित्सक-चिकित्सा करने में निपुण । सूत्र-८३७
भगवान महावीर के नौ गण थे, यथा-गोदास गण, उत्तर बलिस्सह गण, उद्देह गण, चारण गण, उर्ध्ववातिक गण, विश्ववादी गण, कामार्द्धिक गण, मानव गण और कोटिक गण ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 136