________________
आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-८६९
भगवान पार्श्वनाथ पुरुषों में आदेयनामकर्म वज्रऋषभनाराच संघयण और समचतुरस्र संस्थान वाले थे तथा नौ हाथ के ऊंचे थे। सूत्र-८७०
भगवान महावीर के तीर्थ में नौ जीवों ने तीर्थंकरगोत्र नामकर्म का उपार्जन किया, श्रेणिक, सुपार्श्व, उदायन, पोटिलमुनि, दृढ़ायु, शंख, शतक, सुलसा, रेवती। सूत्र-८७१
आर्य कृष्णवासुदेव, राम बलदेव, उदक पेढालपुत्र, पोटिलमुनि, शतक गाथापति, दारूक निर्ग्रन्थ, सत्यकी निर्ग्रन्थीपुत्र, सुलसा श्राविका से प्रतिबोधिक अम्बड़ परिव्राजक, भगवंत पार्श्वनाथ की प्रशिष्या सुपार्वा आर्या । ये आगामी उत्सर्पिणी में चारयाम धर्म की प्ररूपणा करके सिद्ध होंगे यावत्-सब दुःखों का अन्त करेंगे। सूत्र-८७२
हे आर्य ! यह श्रेणिक राजा मरकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमंतक नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की नारकीय स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न होगा और अति तीव्र यावत्-असह्य वेदना भोगेगा । यह उस नरक से नीकलकर आगामी उत्सर्पिणी में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्यपर्वत के समीप पुण्ड्र जनपद के शतद्वार नगर में संमति कुलकर की भद्रा भार्या की कुक्षी में पुत्र रूप में उत्पन्न होगा । नौ मास और साढ़े सात अहोरात्र बीतने पर सुकुमार हाथ-पैर, प्रतिपूर्ण पंचेन्द्रिय शरीर और उत्तम लक्षण तिलसम युक्त यावत्-रूपवान पुत्र पैदा होगा।
जिस रात्रि में यह पुत्र रूप में पैदा होगा उस रात्रि में शतद्वार नगर के अन्दर और बाहर भाराग्र तथा कुम्भाग्र प्रमाण पद्म एवं रत्नों की वर्षा बरसेगी । पश्चात् उसके माता-पिता इग्यारवाँ दिन बीतने पर यावत्-बारहवें दिन उसका गुणसम्पन्न नाम देंगे । क्योंकि इनका जन्म होने पर शतद्वार नगर के अन्दर और बाहर भार एवं कुम्भ प्रमाण पद्म एवं रत्नों की वर्षा होने से इस पुत्र का महापद्म नाम देंगे।
पश्चात् महापद्म के माता-पिता महापद्म को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर राज्याभिषेक का महोत्सव करेंगे । पश्चात् वह राजा महाराजा के समान यावत्-राज्य करेगा । उसके राज्यकाल में पूर्णभद्र और महाभद्र नाम के दो देव महर्द्धिक यावत्-महान ऐश्वर्य वाले उनकी सेना का संचालन करेंगे । उस समय शतद्वार नगर के बहुत से राजा यावत्-सार्थवाह आदि परस्पर बातें करेंगे-हे देवानुप्रियो ! हमारे महापद्म राजा की सेना का संचालन महर्द्धिक यावत्-महान ऐश्वर्य वाले दो देव (पूर्णभद्र और मणिभद्र) करते हैं इसलिए इनका दूसरा नाम देवसेन हो । उस समय से महापद्म का दूसरा नाम देवसेन भी होगा।
कुछ समय पश्चात् उस देवसेना राजा को शंखतल जैसा निर्मल, श्वेत, चार दाँत वाला हस्तिरत्न प्राप्त होगा। वह देवसेन राजा उस हस्तिरत्न पर आरूढ़ होकर शतद्वार नगर के मध्यभाग में से बार-बार आव-जाव करेगा । उस समय शतद्वार नगर के बहुत से राजेश्वर यावत्-सार्थवाह आदि परस्पर बातें करेंगे । यथा-हे देवानुप्रियो ! हमारे देवसेन राजा को शंखतल जैसा निर्मल श्वेत चार दाँत वाला हस्तिरत्न प्राप्त हुआ है, इसलिए हमारे देवसेन राजा का तीसरा नाम विमलवाहन हो।
पश्चात् वह विमलवाहन राजा तीस वर्ष गृहस्थावास में रहेगा और माता-पिता के स्वर्गवासी होने पर गुरुजनों की आज्ञा लेकर शरद् ऋतु में स्वयं बोध को प्राप्त होगा तथा अनुत्तर मोक्ष मार्ग में प्रस्थान करेगा । उस समय लोकान्तिक देव इष्ट यावत्-कल्याणकारी वाणी से उनका अभिनन्दन एवं स्तुति करेंगे । नगर के बाहर सूभूमि भाग उद्यान में एक देवदूष्य वस्त्र ग्रहण करके वह प्रव्रज्या लेगा।
शरीर का ममत्व न रखने वाले उन भगवान को कुछ अधिक बारह वर्ष तक देव, मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी जो उपसर्ग उत्पन्न होंगे वे समभाव से सहन करेंगे यावत्-अकम्पित रहेंगे। पश्चात् वे विमलवाहन भगवान ईर्यासमिति, भाषासमिति का पालन करेंगे यावत्-ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे। वे निर्मम निष्परिग्रही कांस्यपात्र के समान अलिप्त
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 139