Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 137
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-८३८ श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों की नव कोटि शुद्ध भिक्षा कही है, यथा-स्वयं जीवों की हिंसा नहीं करता है, दूसरों से हिंसा नहीं करवाता है, हिंसा करने वालों का अनुमोदन नहीं करता है, स्वयं अन्नादि को पकाता नहीं है, दूसरों से पकवाता नहीं है, पकाने वालों का अनुमोदन नहीं करता है, स्वयं आहारादि खरीदता नहीं है, दूसरों से खरीदवाता नहीं है, खरीदने वालों का अनुमोदन नहीं करता है। सूत्र- ८३९ ईशानेन्द्र के वरुण लोकपाल की नौ अग्रमहिषियाँ हैं। सूत्र-८४०-८४२ ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की स्थिति नव पल्योपम की है। ईशान कोण में देवियों की उत्कृष्ट स्थिति नव पल्योपम की है। नौ देव निकाय हैं, यथा- सारस्वत, आदित्य, वन्हि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय, रिष्ट । सूत्र- ८४३ अव्याबाध देवों के नवसौ नौ देवों का परिवार है, इसी प्रकार अगिच्चा और रिट्ठा देवों का परिवार है। सूत्र-८४४ नौ ग्रैवेयक विमान प्रस्तट (प्रतर) हैं, यथा-अधस्तन अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, अधस्तन मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, अधस्तन उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, मध्यम अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, मध्यम मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, मध्यम उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, उपरितन अधस्तन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, उपरितन मध्यम ग्रैवेयक विमान प्रस्तट, उपरितन उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तट । सूत्र- ८४५ नव ग्रैवेयक विमान प्रस्तटों के नौ नाम हैं, यथा-भद्र, सुभद्र, सुजात, सौमनस, प्रियदर्शन, सुदर्शन, अमोघ, सुप्रबुद्ध और यशोधर। सूत्र - ८४६ आयु परिणाम नौ प्रकार का है, यथा-गति परिणाम, गतिबंधणपरिणाम, स्थितिपरिणाम, स्थितिबंधणपरिणाम, उर्ध्वगोरवपरिणाम, अधोगोरवपरिणाम, तिर्यगगोरव परिणाम, दीर्घ गोरवपरिणाम और ह्रस्व गोरव परिणाम सूत्र-८४७ नव नवमिका भिक्षा प्रतिमा का सूत्रानुसार आराधन यावत् पालन इक्यासी रात दिन में होता है, इस प्रतिमा में ४०५ बार भिक्षा (दत्ति) ली जाती है। सूत्र-८४८ प्रायश्चित्त नौ प्रकार का है, यथा-आलोचनार्ह-गुरु के समक्ष आलोचना करने से जो पाप छूटे, यावत् मूलाह - (पुनः दीक्षा देने योग्य) और अनवस्थाप्यारी अत्यन्त संक्लिष्ट परिणाम वाले को इस प्रकार के तप का प्रायश्चित्त दिया जाता है। जिससे कि वह उठ बैठ नहीं सके । तप पूर्ण होने पर उपस्थापना (पुनः महाव्रतारोपणा) की जाती है और यह तप जहाँ तक किया जाता है वहाँ तक तप करने वाले से कोई बात नहीं करता। सूत्र-८४९, ८५० जम्बूद्वीप के मेरु से दक्षिण दिशा के भरत में दीर्घवैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा- सिद्ध, भरत, खण्डप्रपातकूट, मणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, भरत और वैश्रमण । सूत्र-८५१, ८५२ जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में निषध वर्षधर पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा- सिद्ध, निषध, हरिवर्ष, विदेह, हरि, धृति,शीतोदा, अपरविदेह, रुचक। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 137

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