Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 129
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक पूर्व और पश्चिम दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियाँ षट्कोण हैं । उत्तर और दक्षिण दिशा की दो बाह्य कृष्णराजियाँ त्रिकोण हैं। सभी आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ चौरस हैं। आठ कृष्णराजियों के आठ नाम हैं-यथा-कृष्णराजि, मेघराजि, मघाराजि, माधवती, वातपरिधा, वातपरिक्षोभ, देवपरिधा, देवपरिक्षोभ । इन आठ कृष्णराजियों के मध्य भाग में आठ लोकान्तिक विमान हैं, यथा-अर्चि, अर्चिमाली, वैरोचन, प्रभंकर, चन्द्राभ, सूर्याभ, सुप्रतिष्ठाभ, अग्नेयाभ । इन आठ लोकान्तिक विमानों में अजघन्योत्कृष्ट आठ सागरोपम स्थिति वाला आठ लोकान्तिक देव रहते हैं, यथा- सारस्वत, आदित्य, वह्नि, वरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, आग्नेय । सूत्र - ७३६ धर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, अधर्मास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, आकाशास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं, जीवास्तिकाय के मध्य प्रदेश आठ हैं। सूत्र - ७३७ महापद्म अर्हन्त आठ राजाओं को मुण्डित करके तथा गृहस्थ का त्याग करा करके अणगार प्रव्रज्या देंगे। यथा-पद्म, पद्मगुल्म, नलिन, नलिनगुल्म, पद्मध्वज, धनुध्वज, कनकरथ, भरत । सूत्र - ७३८ कृष्ण वासुदेव की आठ अग्रमहिषियाँ अर्हन्त अरिष्टनेमि के समीप मुण्डित होकर तथा गृहस्थ से नीकल कर अणगार प्रव्रज्या स्वीकार करेंगी, सिद्ध होंगी यावत् सर्व दुःखों से मुक्त होंगी। यथा-पद्मावती, गोरी, गंधारी, लक्षणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा और रुक्मिणी। सूत्र - ७३९ वीर्यप्रवाद पूर्व की आठ वस्तु और आठ चूलिका वस्तु है । सूत्र-७४० गतियाँ आठ प्रकार की हैं, यथा-नरकगति, तिर्यंचगति, यावत् सिद्धगति, गुरुगति, प्रणोदनगति और प्राग्भारगति। सूत्र-७४१ ___ गंगा, सिन्धु, रक्ता और रक्तवती देवियों के द्वीप आठ-आठ योजन के लम्बे चौड़े हैं। सूत्र - ७४२ उल्कामुख, मेघमुख, विद्युन्मुख और विद्युदंत अन्तर द्वीपों के द्वीप आठसौ-आठसौ योजन के लम्बे चौड़े हैं सूत्र-७४३ कालोद समुद्र की वलयाकार चौड़ाई आठ लाख योजन की है। सूत्र - ७४४ आभ्यन्तर पुष्करार्धद्वीप की वलयाकार चौड़ाई भी आठ लाख योजन की है । बाह्य पुष्करार्ध द्वीप की वलयाकार चौड़ाई भी इतनी ही है। सूत्र-७४५ प्रत्येक चक्रवर्ती के काकिणी रत्न आठ सुवर्ण प्रमाण होते हैं । काकिणी रत्न के ६ तले, १२ अस्त्रि, आठ कर्णिकाएं होती हैं। काकिणी रत्न का संस्थान एरण के समान होता है। सूत्र - ७४६ मगध का योजन आठ हजार धनुष का निश्चित है। सूत्र-७४७ जम्बूद्वीप में सुदर्शन वृक्ष आठ योजन का ऊंचा है, मध्य भाग में आठ योजन का चौड़ा है, और सर्व परिमाण मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 129

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