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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक के वर्णन के समान कहना चाहिए । धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में भी महाधातकी वृक्ष से मेरु चूलिका पर्यन्त का कथन जम्बूद्वीप के वर्णन के समान है।
इसी प्रकार पुष्करवरद्वीपा के पूर्वार्ध में पद्मवृक्ष से मेरु चूलिका पर्यन्त का कथन जम्बूद्वीप के समान है। इस प्रकार पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में महापद्म वृक्ष से मेरु चूलिका पर्यन्त का कथन जम्बूद्वीप के समान है। सूत्र- ७५४, ७५५
जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत पर भद्रशालवन में आठ दिशाहस्तिकूट हैं । यथा-पद्मोत्तर, नीलवंत, सुहस्ती, अंजनागिरी, कुमुद, पलाश, अवतंसक, रोचनागिरी। सूत्र - ७५६
जम्बूद्वीप की जगति आठ योजन की ऊंची है और मध्य में आठ योजन की चौड़ी है। सूत्र-७५७, ७५८
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवंत वर्षधर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा- सिद्ध, महाहिमवंत, हिमवंत, रोहित, हरीकूट, हरिकान्त, हरिवास, वैडूर्य । सूत्र - ७५९, ७६०
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रुक्मी पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा- सिद्ध, रुक्मी, रम्यक्, नरकान्त, बुद्धि, रुक्मकूट, हिरण्यवत, मणिकंचन । सूत्र- ७६१,७६२
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा- रिष्ट, तपनीय, कंचन, रजत, दिशास्वस्तिक, प्रलम्ब, अंजन, अंजनपुलक । सूत्र- ७६३,७६४
इन आठ कूटों पर महर्धिक यावत् पल्योपम स्थिति वाली आठ दिशा कुमारियाँ रहती हैं । यथा- नंदुत्तरा, नंदा, आनन्दा, नंदिवर्धना, विजया, वैजयंती, जयंती, अपराजिता । सूत्र- ७६५-७६८
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा- कनक, कंचन, पद्म, नलिन, शशि, दीवाकर, वैश्रमण, वैडूर्य।
इन आठ कूटों पर महर्धिक यावत् पल्योपम स्थिति वाली आठ दिशा कुमारियाँ रहती हैं । यथा- समाहारा, सुप्रतिज्ञा, सुप्रबद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्त, वसुंधरा । सूत्र-७६९, ७७०
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा- स्वस्तिक, अमोघ, हिमवत्, मंदर, रुचक, चक्रोतम, चन्द्र, सुदर्शन । सूत्र- ७७१, ७७२
इन आठ कूटों पर महर्धिक यावत् पल्योपम स्थिति वाली आठ दिशाकुमारियाँ रहती हैं, यथा- इलादेवी, सुरादेवी, पृथ्वी, पद्मावती, एक नासा, नवमिका, सीता, भद्रा। सूत्र - ७७३, ७७४
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा- रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न, रत्नसंचय, विजय, वैजयंत, जयन्त, अपराजित । सूत्र- ७७५, ७७६
इन आठ कूटों पर महर्धिक यावत् पल्योपम स्थिति वाली आठ दिशाकुमारियाँ रहती हैं, यथा- अलंबुसा, मितकेसी, पोंडरी गीत-वारुणी, आशा, सर्वगा, श्री, ह्री।
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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