________________
आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-७१०
प्रायश्चित्त आठ प्रकार का कहा गया है, यथा-आलोचनायोग्य, प्रतिक्रमणयोग्य, उभययोग्य, विवेकयोग्य, व्युत्सर्गयोग्य, तपयोग्य, छेदयोग्य और मूलयोग्य । सूत्र - ७११
मद स्थान आठ कहे हैं, यथा-जाति मद, कुल मद, बल मद, रूप मद, तप मद, सूत्र मद, लाभ मद, ऐश्वर्य मद । सूत्र-७१२
अक्रियावादी आठ हैं, यथा-एक वादी-आत्मा एक ही है ऐसा कहने वाले, अनेकवादी-सभी भावों को भिन्न मानने वाले, मितवादी-अनन्त जीव हैं फिर भी जीवों की एक नियत संख्या मानने वाले । निर्मितवादी- यह सृष्टि किसी की बनाई हुई है ऐसा मानने वाले । सातवादी-सुख से रहना, किन्तु तपश्चर्या न करना । समुच्छेदवादी - प्रतिक्षण वस्तु नष्ट होती है, ऐसा मानने वाले क्षणिकवादी । नित्यवादी-सभी वस्तुओं को नित्य मानने वाले । मोक्ष या परलोक नहीं है, ऐसा मानने वाले। सूत्र - ७१३
महानिमित्त आठ प्रकार का कहा गया है, यथा-भौम-भूमि विषयक शुभाशुभ का ज्ञान करने वाले शास्त्र । उत्पात-रुधिर वृष्टि आदि उत्पातों का फल बताने वाला शास्त्र । स्वप्न-शुभाशुभ स्वप्नों का फल बताने वाला शास्त्र । अंतरिक्ष-गांधर्व नगरादि का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र । अंग-चक्षु, मस्तक आदि अंगों के फरकने से शुभाशुभ फल की सूचना देने वाला शास्त्र । स्वर-षड्ज आदि स्वरों का शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र । लक्षण - स्त्री-पुरुष के शुभाशुभ लक्षण बताने वाला शास्त्र । व्यञ्जन-तिल मस आदि के शुभाशुभ फल बताने वाला शास्त्र सूत्र - ७१४-७२०
वचन विभक्ति आठ प्रकार की कही गई है, यथा-निर्देश में प्रथमा-वह, यह, मैं । उपदेश में द्वीतिया-यह करो। इस श्लोक को पढ़ो । करण में तृतीया-मैंने कुण्ड बनाया । सम्प्रदान में चतुर्थी-नमः स्वस्ति, स्वाहा के योग में । अपादान में पंचमी-पृथक् करने में तथा ग्रहण करने में, यथा-कूप से जल नीकाल, कोठी में से धान्य ग्रहण कर। स्वामित्व के सम्बन्ध में षष्ठी-इसका, उसका तथा सेठ का नौकर । सन्निधान अर्थ में सप्तमी-आधार अर्थ में-मस्तक पर मुकुट है । काल में प्रातःकाल में कमल खिलता है, भावरूप क्रिया विशेषण में सूर्य अस्त होने पर रात्रि हुई। आमन्त्रण में अष्टमी-यथा हे युवान्! सूत्र - ७२१
आठ स्थानों को छद्मस्थ पूर्णरूप से न देखता है और न जानता है । यथा-धर्मास्तिकाय यावत् गंध और वायु । आठ स्थानों को सर्वज्ञ पूर्णरूप से देखता है और जानता है । यथा-धर्मास्तिकाय यावत् गंध और वायु । सूत्र - ७२२
आयुर्वेद आठ प्रकार का कहा गया है, यथा-कुमार भृत्य-बाल चिकित्सा शास्त्र, कायचिकित्सा-शरीर चिकित्सा शास्त्र, शालाक्य-गले से ऊपर के अंगों की चिकित्सा का शास्त्र । शल्यहत्या-शरीर में कंटक आदि कहीं लग जाए तो उसकी चिकित्सा का शास्त्र, जंगोली-सर्प आदि के विष कि चिकित्सा का शास्त्र । भूतविद्या-भूतपिशाच आदि के शमन का शास्त्र, क्षारतंत्र-वीर्यपात की चिकित्सा का शास्त्र, रसायन-शरीर आयुष्य और बुद्धि की वृद्धि करने वाला शास्त्र। सूत्र - ७२३
शक्रेन्द्र के आठ अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-पद्मा, शिवा, सती, अंजू, अमला, आसरा, नवमिका, रोहिणी । ईशानेन्द्र के आठ अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-१. कृष्णा, कृष्णराजी, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुगुप्ता, वसुमित्रा, वसुंधरा। शक्रेन्द्र के सोम लोकपाल की आठ अग्रमहिषियाँ हैं, ईशानेन्द्र के वैश्रमण लोकपाल की आठ अग्र-महिषियाँ हैं।
महाग्रह आठ हैं, यथा-चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बुध, बृहस्पति, मंगल, शनैश्चर, केतु ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 127