Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 128
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-७२४ तृण वनस्पतिकाय आठ प्रकार का है, यथा-मूल, कंद, स्कंध, त्वचा, खाल, प्रवाल, पत्र, पुष्प । सूत्र - ७२५ चउरिन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वालों में आठ प्रकार का संयम होता है । यथा-नेत्र सुख नष्ट नहीं होता, नेत्र दुःख उत्पन्न नहीं होता, यावत्-स्पर्श सुख नष्ट नहीं होता, स्पर्श दुःख उत्पन्न नहीं होता। चउरिन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वालों के आठ प्रकार का असंयम होता है, यथा-नेत्र सुख नष्ट होता है, नेत्र दुःख उत्पन्न होता है, यावत्-स्पर्श दुःख उत्पन्न होता है। सूत्र - ७२६ सूक्ष्म आठ प्रकार के हैं, यथा-प्राणसूक्ष्म-कुंथुआ आदि, पनक सूक्ष्म-लीलण, फूलण, बीज सूक्ष्म-बटबीज हरित सूक्ष्म-लीली वनस्पति, पुष्पसूक्ष्म, अंडसूक्ष्म-कमियों के अंडे, लयनसूक्ष्म-कीड़ी नगरा, स्नेहसूक्ष्म-धुंअर आदि। सूत्र - ७२७ भरत चक्रवर्ती के पश्चात् आठ युग प्रधान पुरुष व्यवधान रहित सिद्ध हुए यावत्-सर्व दुःख रहित हुए । यथाआदित्य यश, महायश, अतिबल, महाबल, तेजोवीर्य, कार्तवीर्य, दंडवीर्य, जलवीर्य । सूत्र - ७२८ भगवान पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर थे, यथा-शुभ, आर्य, घोष, वशिष्ठ, ब्रह्मचारी, सोम, श्रीधर, वीर्य, भद्रयश। सूत्र-७२९ दर्शन आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा-सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन, सम्यगमिथ्यादर्शन, चक्षुदर्शन यावत् केवलदर्शन और स्वप्नदर्शन। सूत्र - ७३० औपमिक काल आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा-पल्योपम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुद्गलपरावर्तन, अतीतकाल, भविष्यकाल, सर्वकाल । सूत्र - ७३१ ___ भगवान अरिष्टनेमि के पश्चात् आठ युग प्रधान पुरुष मोक्ष में गए और उनकी दीक्षा के दो वर्ष पश्चात् वे मोक्ष में गए। सूत्र-७३२ भगवान महावीर से मुण्डित होकर आठ राजा प्रव्रजित हुए । यथा-वीरांगद, क्षीरयश, संजय, एणेयक, श्वेत, शिव, उदायन, शंख। सूत्र-७३३ आहार आठ प्रकार के हैं, यथा-मनोज्ञ अशन, मनोज्ञ पान, मनोज्ञ खाद्य, मनोज्ञ स्वाद्य, अमनोज्ञ अशन, अमनोज्ञ पान, अमनोज्ञ खाद्य, अमनोज्ञ स्वाद्य । सूत्र- ७३४,७३५ सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के नीचे ब्रह्मलोक कल्प में रिष्टविमान के प्रस्तट में अखाड़े के समान समचतुरस्र संस्थान वाली आठ कृष्णराजियाँ हैं, दो कृष्णराजियाँ पूर्व में, दो कृष्णराजियाँ दक्षिण में, दो कृष्णराजियाँ पश्चिम में, दो कृष्णराजियाँ उत्तर में । पूर्व दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि दक्षिण दिशा को बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है । दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि पश्चिम दिशा की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। पश्चिम दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि उत्तर दिशा की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। उत्तर दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजि पूर्व दिशा की बाह्य कृष्णराजि से स्पृष्ट है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 128

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