Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 124
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक वाले, सामुच्छिदेका-क्षणिक भाव मानने वाले, दो क्रिया-एक समय में दो क्रिया मानने वाले, त्रैराशिका-जीव राशि, अजीवराशि और नोजीवराशि। इस प्रकार तीन राशि की प्ररूपणा करने वाले, अबद्धिका-जीव कर्म से स्पष्ट है किन्तु कर्म से बद्ध जीव नहीं है, इस प्रकार की प्ररूपणा करने वाले। इन सात प्रवचन निह्नवों के सात धर्माचार्य थे, यथा-१. जमाली, २. तिष्यगुप्त, ३. आषाढ़, ४. अश्वमित्र, ५. गंग, ६. षडुलुक (रोहगुप्त), ७. गोष्ठामाहिल । सूत्र-६८९ इन प्रवचन निह्नवों के सात उत्पत्ति नगर हैं, यथा-श्रावस्ती, ऋषभपुर, श्वेताम्बिका, मिथिला, उल्लुकातीर, अंतरंजिका और दशपुर। सूत्र-६९० सातावेदनीय कर्म के सात अनुभाव (फल) हैं, यथा-मनोज्ञ शब्द, मनोज्ञ रूप, यावत्-मनोज्ञ स्पर्श, मानसिक सुख, वाचिक सुख । असातावेदनीय कर्म के सात अनुभाव (फल) हैं, यथा-अमनोज्ञ शब्द यावत्-वाचिक दुःख । सूत्र-६९१ मघा नक्षत्र के सात तारे हैं, अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा में द्वार वाले हैं, यथा-अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती। अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिण दिशा में द्वार वाले हैं, यथा-अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु। ___ पुष्य आदि सात नक्षत्र पश्चिम दिशा में द्वार वाले हैं, यथा-पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा-फाल्गुनी, हस्त, चित्रा। स्वाति आदि सात नक्षत्र उत्तर दिशा में द्वार वाले हैं, यथा-स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा। सूत्र- ६९२ जम्बूद्वीप में सोमनस वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट हैं, यथासूत्र - ६९३ सिद्धकूट, सोमनसकूट, मंगलावतीकूट, देवकूट, विमलकूट, कंचनकूट और विशिष्टकूट । सूत्र- ६९४ __जम्बूद्वीप में गंधमादन वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट हैं, यथासूत्र-६९५ सिद्धकूट, गंधमादनकूट, गंधिलावतीकूट, उत्तरकुरुकूट, फलिधकूट, लोहिताक्षकूट, आनन्दनकूट । सूत्र- ६९६ बेइन्द्रिय की सात लाख कुल कौड़ी हैं। सूत्र-६९७ जीवों ने सात स्थानों में निवर्तित (संचित) पुद्गल पाप कर्म के रूप में चयन किये हैं, चयन करते हैं और चयन करेंगे। इसी प्रकार उपचयन, बन्ध, उदीरणा, वेदना और निर्जरा के तीन-तीन दण्डक कहें। सूत्र- ६९८ सात प्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, सात प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं, यावत् सात गुण रूक्ष पुद्गल अनन्त हैं स्थान-७ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 124

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