Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 121
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-६६८ श्रमण भगवान महावीर वज्रऋषभनाराच संघयण वाले समचतुरस्र संस्थान वाले और सात हाथ ऊंचे थे। सूत्र - ६६९ सात विकथाएं कही गई है, यथा-स्त्री कथा, भक्त (आहार) कथा, देश कथा, राज कथा, मृदुकारिणी कथा, दर्शनभेदिनी, चारित्र भेदिनी। सूत्र-६७० गण में आचार्य और उपाध्याय के सात अतिशय हैं । यथा-आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय में धूल भरे पैरों को दूसरे से झटकवावे या पूंछावे तो भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता-शेष पाँचवे ठाणे के समान यावत् आचार्य उपाध्याय उपाश्रय के बाहर ईच्छानुसार एक रात या दो रात रहे तो भी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं होता । उपकरण की विशेषता-आचार्य या उपाध्याय उज्ज्वल वस्त्र रखे तो मर्यादा का लंघन नहीं होता । भक्तपान की विशेषताआचार्य या उपाध्याय श्रेष्ठ और पथ्य भोजन ले तो मर्यादा का अतिक्रमण नहीं होता। सूत्र- ६७१ संयम सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा-पृथ्वीकायिक संयम-यावत् त्रस कायिक संयम और अजीवकाय संयम। ___ असंयम सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा-पृथ्वीकायिक असंयम-यावत् त्रसकायिक असंयम और अजीवकाय असंयम। आरम्भ सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा-पृथ्वीकायिक आरम्भ-यावत् अजीवकाय आरम्भ । इसी प्रकार अनारम्भसूत्र हैं । सारंभसूत्र हैं । असारम्भसूत्र हैं। समारम्भसूत्र हैं । असमारम्भसूत्र हैं। सूत्र - ६७२ प्रश्न-हे भगवन् ! अलसी, कुसुभ, कोद्रव, कांग, रल, सण, सरसों और मूले के बीज । इन धान्यों को कोठे में, पाले में यावत् ढाँककर रखे तो उन धान्यों की योनि कितने काल तक सचित्त रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त्त, उत्कृष्ट-सात संवत्सर । पश्चात् योनि म्लान हो जाती है यावत् योनि नष्ट हो जाती है। सूत्र - ६७३ बादर-अप्कायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति सात हजार वर्ष की कही गई है। तीसरी बालुकाप्रभा में नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की कही गई है । चौथी पंकप्रभा में नैरयिकों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम की कही गई है। सूत्र-६७४ शक्रेन्द्र के वरुण लोकपाल की सात अग्रमहिषियाँ हैं । ईशानेन्द्र के सोम लोकपाल की सात अग्रमहिषियाँ हैं ईशानेन्द्र के यम लोकपाल की सात अग्रमहिषियाँ हैं। सूत्र - ६७५ ईशानेन्द्र के आभ्यन्तर परीषद् के देवों की स्थिति सात पल्योपम की है । शक्रेन्द्र के अग्रमहिषी देवियों की स्थिति सात पल्योपम की है। सौधर्म कल्प में परिगृहीता देवियों की उत्कृष्ट स्थिति सात पल्योपम की है। सूत्र - ६७६ सारस्वत लोकान्तिक देव के सात देवों का परिवार है। आदित्य लोकान्तिक देव के सात सौ देवों का परिवार है। गर्दतोय लोकान्तिक देव के सात देवों का परिवार है। तुषित लोकान्तिक देव के सात हजार देवों का परिवार है। सूत्र-६७७ सनत्कुमार कल्प में देवताओं की उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की है । महेन्द्र कल्प में देवताओं की उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागरोपम की है, ब्रह्मलोक कल्प में देवताओं की जघन्य स्थिति सात सागरोपम की है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 121

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