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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र - ३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक
जम्बूद्वीप में सात वर्षधर पर्वत कहे गए हैं । यथा - चुल्लहिमवन्त, महाहिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मी, शिखरी, मंदराचल |
जम्बूद्वीप में सात महानदियाँ हैं जो पूर्व की ओर बहती हुई लवण समुद्र में मिलती हैं । यथा-गंगा, रोहिता, हरित, शीता, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रक्ता । जम्बूद्वीप में सात महानदियाँ हैं जो पश्चिम की ओर बहती हुई लवण समुद्र में मिलती हैं, यथा-सिन्धु, रोहीतांशा, हरिकान्ता, शीतोदा, नारीकान्ता, रूप्यकूला, रक्तवती ।
धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में सात वर्ष हैं, यथा-भरत यावत् महाविदेह । धातकीखण्ड द्वीप में पूर्वार्ध में सात वर्षधर पर्वत हैं । यथा- १. चुल्ल हिमवंत यावत् मंदराचल । धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में सात महानदियाँ हैं जो पूर्व दिशा में बहती हुई कालोद समुद्र में मिलती हैं। यथा-गंगा यावत् रक्ता । धातकीखण्ड द्वीप में सात महा-नदियाँ हैं जो पश्चिम में बहती हुई लवण समुद्र में मिलती हैं ।
धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्धमें सात वर्षक्षेत्र हैं, भरत यावत् महाविदेह । शेष तीन सूत्र पूर्ववत् । विशेष - पूर्व की ओर बहनेवाली नदियाँ लवणसमुद्रमें मिलती हैं, पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियाँ कालोदसमुद्रमें मिलती हैं। पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में पूर्ववत् सात वर्ष क्षेत्र हैं । विशेष - पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ पुष्करोद समुद्र में मिलती हैं । पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ कालोद समुद्र में मिलती हैं ।
पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में पूर्ववत् सात वर्ष क्षेत्र हैं। विशेष - पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ पुष्करोद समुद्र में मिलती हैं । पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ कालोदसमुद्र में मिलती हैं। शेष तीन सूत्र पूर्ववत् । इसी प्रकार पश्चिमार्ध के भी चार सूत्र हैं। विशेष- पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ कालोदसमुद्र में मिलती हैं और पश्चिम की ओर बहने वाली पुष्करोद समुद्र में मिलती हैं। वर्ष, वर्षधर और नदियाँ सर्वत्र कहनी चाहिए।
सूत्र - ६४६, ६४७
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी में सात कुलकर थे, यथा- मित्रदास, सुदाम, सुपार्श्व, स्वयंप्रभ, विमलघोष, सुघोष, महाघोष ।
सूत्र - ६४८, ६४९
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी में सात कुलकर थे । विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वान्, अभिचन्द्र, प्रसेनजित्, मरुदेव और नाभि ।
सूत्र - ६५०, ६५१
इन सात कुलकरों की सात भार्याएं थीं, यथा- चन्द्रयशा, चन्द्रकान्ता, सुरूपा, प्रतिरूपा, चक्षुकान्ता, श्रीकान्ता, मरुदेवी ।
सूत्र - ६५२, ६५३
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में सात कुलकर होंगे । यथा - मित्रवाहन, सुभीम, सुप्रभ, सयंप्रभ, दत्त, सूक्ष्म, सुबन्धु ।
सूत्र - ६५४, ६५५
विमलवाहन कुलकर के काल में सात प्रकार के कल्पवृक्ष उपभोग में आते थे । यथा- मद्यांगा, भृंगा, चित्रांगा, चित्ररसा, मण्यंगा, अनग्ना, कल्पवृक्ष ।
सूत्र - ६५६
दण्ड नीति सात प्रकार की है, यथा-हक्कार- हे या हा कहना । मक्कार मा अर्थात् मत कर कहना । धिक्कारफटकारना । परिभाषण - अपराधी को उपालम्भ देना । मंडलबंध - क्षेत्र मर्यादा से बाहर न जाने की आज्ञा देना । चारक-कैद करना । छविच्छेद- हाथ पैर आदि का छेदन करना ।
सूत्र - ६५७
प्रत्येक चक्रवर्ती के सात एकेन्द्रिय रत्न कहे गए हैं। यथा-चक्ररत्न, छत्ररत्न, चर्मरत्न, दण्डरत्न, असिरत्न,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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