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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक काश्यप गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा-काश्यप, सांडिल्य, गोल्य, बाल, मौजकी, पर्वप्रेक्षकी, वर्षकृष्ण।
गौतम गोत्र सात प्रकार का है-गौतम, गार्ग्य, भारद्वाज, अंगिरस, शर्कराभ, भक्षकाम, उदकात्माभ। वत्स गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा-वत्स, आग्नेय, मैत्रिक, स्वामिली, शलक, अस्थिसेन, वीतकर्म कुत्स गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा-कुत्स, मौद्गलायन, पिंगलायन, कौडिन्य, मंडली, हारित, सौम्य
कौशिक गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा-कौशिक, कात्यायन, शालंकायण, गोलिकायण, पाक्षिकायण, आग्नेय, लोहित्य।
मांडव्य गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा-मांडव्य, अरिष्ट, संमुक्त, तैल, ऐलापत्य, कांडिल्य, क्षारायण ।
वाशिष्ठ गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा-वाशिष्ठ, उजायन, जारेकृष्ण, व्याघ्रापत्य, कौण्डिन्य, संज्ञी, पाराशर । सूत्र-६०३
मूल नय सात प्रकार के कहे गए हैं, यथा-नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़, एवंभूत । सूत्र-६०४
स्वर सात प्रकार के कहे गए हैं, यथासूत्र-६०५
षड्ज, रिसभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद । षड्ज-१. नासा, २. कंठ, ३. हृदय, ४. जीभ, ५. दाँत और ६. तालु इन छ: स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर । रिषभ-बैल (साँड़) के समान गंभीर स्वर । गांधार-विविध प्रकार के गंधों से युक्त स्वर । मध्यम-महानाद वाला स्वर । पंचम-नासिकाओं से नीकलने वाला स्वर । धैवत-अन्य स्वरों से अनुसंधान करने वाला स्वर । निषाद-अन्य स्वरों को तिरस्कृत करने वाला स्वर । सूत्र - ६०६
इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान हैं, यथासूत्र-६०७
षड्ज स्वर जिह्वा के अग्रभाग से नीकलने वाला स्वर । ऋषभ स्वर हृदय से नीकलता है । गांधार स्वर उग्र कंठ से नीकलता है । मध्यम स्वर जिह्वा के मध्य भाग से नीकलता है। सूत्र - ६०८
पंचम स्वर पाँच स्थानों से नीकलने वाला स्वर । धैवत स्वर दाँत और ओष्ठ से नीकलने वाला स्वर । निषाद स्वर मस्तक से नीकलने वाला स्वर । सूत्र-६०९
सात प्रकार के जीवों से नीकलने वाले सात स्वर हैं । यथासूत्र- ६१०
षड्ज-मयूर के कण्ठ से नीकलने वाला स्वर । रिषभ-कुक्कुट के कण्ठ से नीकलता है । गांधार हंस के कण्ठ से नीकलता है । मध्यम घंटे के कण्ठ से नीकलता है। सूत्र-६११
___पंचम कोयल के कण्ठ से नीकलता है । धैवत सारस या क्रौंच के कण्ठ से नीकलता है । निषाद हाथी के कण्ठ से नीकलता है। सूत्र- ६१२, ६१३
सात प्रकार के अजीव पदार्थों से नीकलने वाले सात स्वर, यथा- षड्जस्वर-मृदङ्ग से नीकलता है । ऋषभ स्वर-गोमुखी से नीकलता है। गांधार स्वर-शंख से नीकलता है। मध्यम स्वर-झालर से नीकलता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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