Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 41
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक क्रिया तीन प्रकार की हैं, यथा-मनः प्रयोग क्रिया, वचन प्रयोग क्रिया, कायप्रयोग क्रिया । समुदान क्रिया तीन प्रकार की है, यथा-अनन्तर समुदान क्रिया, परम्पर समुदान क्रिया, तदुभय समुदान क्रिया । अज्ञान क्रिया तीन प्रकार की कही गई है, यथा-मति-अज्ञान क्रिया, श्रुत-अज्ञान क्रिया और विभंग-अज्ञान क्रिया। अविनय तीन प्रकार का है, देशत्यागी, निराम्बनता, नाना प्रेम-द्वेष अविनय । अज्ञान तीन प्रकार का कहा गया है। प्रदेश अज्ञान, सर्व अज्ञान, भाव अज्ञान । सूत्र-२०१ धर्म तीन प्रकार का है, श्रुतधर्म, चारित्रधर्म और अस्तिकाय-धर्म । उपक्रम तीन प्रकार का कहा गया है, यथा-धार्मिक उपक्रम, अधार्मिक उपक्रम और मिश्र उपक्रम । अथवा तीन प्रकार का उपक्रम कहा गया है, यथा-आत्मोपक्रम, परोपक्रम और तदुभयोपक्रम । इसी तरह वैयावृत्य, अनुग्रह, अनुशासन और उपालम्भ । प्रत्येक के तीन-तीन आलापक उपक्रम के समान ही कहने चाहिए। सूत्र - २०२ कथा तीन प्रकार की कही गई है, अर्थकथा, धर्मकथा और कामकथा। विनिश्चय तीन प्रकार के कहे हैं, अर्थविनिश्चय, धर्मविनिश्चय और कामविनिश्चय । सूत्र-२०३ श्री गौतम स्वामी भगवान महावीर से पूछते हैं-हे भगवन् ! तथारूप श्रमण माहन की सेवा करने वाले को सेवा का क्या फल मिलता है ? भगवान बोले-हे गौतम ! उसे धर्मश्रवण करने का फल मिलता है । हे भगवन् ! धर्म श्रवण करने का क्या फल होता है ? धर्मश्रवण करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। हे भगवन् ! ज्ञान का फल क्या है? हे गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है इस प्रकार इस अभिलापक से यह गाथा जान लेनी चाहिए। सूत्र - २०४ श्रवण का फल ज्ञान, ज्ञान का फल विज्ञान, विज्ञान का फल प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान का फल संयम, संयम का फल अनाश्रव, अनाश्रव का फल तप तप का फल व्यवदान, व्यवदान का फल अक्रिया । अक्रिया का फल निर्वाण है । हे भगवन् ! निर्वाण का क्या फल है ? हे श्रमणायुष्मन् ! सिद्धगति में जाना ही निर्वाण का सर्वान्तिम प्रयोजन है। स्थान-३ - उद्देशक-४ सूत्र- २०५ प्रतिमाधारी अनगार को तीन उपाश्रयों का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा-अतिथिगृह में, खुले मकान में, वृक्ष के नीचे । इसी प्रकार तीन उपाश्रयों की आज्ञा लेना और उनका ग्रहण करना कल्पता है । प्रतिमाधारी अनगार को तीन संस्तारकों की प्रतिलेखना करना कल्पता है, यथा-पृथ्वी-शिला, काष्ठ-शिला और तृणादि । इसी प्रकार तीन संस्तारकों की आज्ञा लेना और ग्रहण करना कल्पता है। सूत्र - २०६ काल तीन प्रकार के कहे गए हैं, भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यकाल। समय तीन प्रकार का कहा गया है, यथा-अतीत काल, वर्तमानकाल और अनागत काल । इसी तरह आवलिका, श्वसोच्छ्वास, स्तोक, क्षण, लव, मुहूर्त, अहोरात्र-यावत् क्रोड़वर्ष, पूर्वांग, पूर्व, यावत्-अवसर्पिणी। पुद्गल परिवर्तन तीन प्रकार का है, यथा-अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागत । सूत्र- २०७ वचन तीन प्रकार के हैं-एकवचन, द्विवचन और बहुवचन । अथवा वचन तीन प्रकार के हैं, स्त्री वचन, पुरुष वचन और नपुंसक वचन । अथवा तीन प्रकार के वचन हैं, अतीत वचन, वर्तमान वचन और भविष्य वचन । सूत्र- २०८ तीन प्रकार की प्रज्ञापना कही गई हैं, यथा-ज्ञान प्रज्ञापना, दर्शन प्रज्ञापना और चारित्र प्रज्ञापना। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 41

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