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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक द्रव्य से-पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्य है । क्षेत्र से लोक प्रमाण है । काल से अतीत में कभी नहीं था ऐसा नहीं-यावत् नित्य है । भाव से-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श युक्त है । गुण से-ग्रहण गुण है। सूत्र - ४८०
गति पाँच है, नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति, देवगति, सिद्धगति। सूत्र - ४८१
पाँच इन्द्रियों के पाँच विषय हैं, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द यावत् स्पर्शेन्द्रिय का विषय स्पर्श ।
मुंड पाँच प्रकार के हैं, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय मुण्ड-यावत्-स्पर्शेन्द्रिय मुण्ड । अथवा मुंड पाँच प्रकार के हैं, यथा - क्रोधमुंड, मानमुंड, मायामुंड, लोमभुंड, शिरमुंड। सूत्र - ४८२
अधोलोक में पाँच बादर (स्थूल) कायिक जीव हैं, यथा-पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, औदारिक शरीर वाले-त्रस प्राणी । ऊर्ध्व लोक में अधोलोक के समान पाँच प्रकार के बादरकायिक जीव हैं, तिरछालोक में पाँच प्रकार के बादर कायिक जीव हैं, यथा एकेन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय ।
पाँच प्रकार के बादर तेजस्कायिक जीव हैं । इंगाल-अंगारे । ज्वाला । मुर्मुर-राख से मिश्रित अग्नि । अर्चिशिखा सहित अग्नि । अलात-जलती हुई लकड़ी या छाणा ।
पाँच प्रकार के बादर वायुकायिक जीव हैं, यथा-पूर्वदिशा का वायु, पश्चिम दिशा का वायु, दक्षिण दिशा का वायु, उत्तर दिशा का वायु, विदिशाओं का वायु ।
पाँच प्रकार के अचित्त वायुकायिक जीव हैं, यथा-अक्रान्त-दबाने से पैदा होने वाला वायु । मात-धमण से पैदा होने वाला वायु । पीड़ित-वस्त्र की नीचोड़ने से होने वाला वायु । शरीरानुगत-डकार या श्वासादि रूप वायु । सम्मूर्छिम-पंखा आदि से उत्पन्न वायु । सूत्र - ४८३
निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के हैं, पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ, स्नातक। पुलाक पाँच प्रकार के हैं, यथा-ज्ञान पुलाक, दर्शन पुलाक, चारित्र पुलाक, लिंग पुलाक, यथासूक्ष्म पुलाक। बकुश पाँच प्रकार के हैं। भोग बकुश, अनाभोग बकुश, संवृत्त बकुश, असंवृत बकुश, यथा सूक्ष्म बकुश । कुशील पाँच प्रकार के हैं, यथा-ज्ञान कुशील, दर्शन कुशील, चारित्र कुशील, लिंग कुशील, यथा सूक्ष्म कुशील
निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के हैं, यथा-प्रथम समय निर्ग्रन्थ, अप्रथम समय निर्ग्रन्थ, चरम समय निर्ग्रन्थ, अचरम समय निर्ग्रन्थ, यथासूक्ष्म निर्ग्रन्थ ।
स्नातक पाँच प्रकार के हैं, यथा-अच्छवी-शरीर रहित । अशबल-अतिचार रहित । अकर्मांश-कर्म रहित । शुद्ध ज्ञान-दर्शन के धारक अर्हन्त जिन केवली । अपरिश्रावी-तीनों योगों का निरोध करने वाला अयोगी। सूत्र-४८४
निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को पाँच प्रकार के वस्त्रों का उपभोग या परिभोग कल्पता है, जांगमिक कंबल आदि भांगमिक-अलसी का वस्त्र । सानक-शण का वस्त्र । पोतक-कपास का वस्त्र । तिरीडपट्ट-वृक्ष की छाल का वस्त्र ।
निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को पाँच प्रकार के रजोहरणों का उपभोग या परिभोग कल्पता है । यथा-और्णिक - ऊन का बना हुआ । औष्ट्रिक-ऊंट के बालों का बना हुआ । शानक-शण का बना हुआ । बल्वज-घास की छाल से बना हुआ । मुज का बना हुआ। सूत्र-४८५
धार्मिक पुरुष के पाँच आलम्बन स्थान हैं, यथा-छकाय, गण, राजा, गृहपति और शरीर । सूत्र-४८६
निधि पाँच प्रकार की है, यथा-पुत्रनिधि, मित्रनिधि, शिल्पनिधि, धननिधि और धान्यनिधि ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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