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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- ५९१
जीवों ने छ: स्थानों में अर्जित पुद्गलों को पाप कर्म के रूप में एकत्रित किया है । एकत्रित करते हैं और एकत्रित करेंगे । यथा-पृथ्वीकाय निवर्तित यावत् त्रसकाय निवर्तित । इसी प्रकार पाप कर्म के रूप में चय, उपचय, बंध, उदीरण, वेदन और निर्जरा सम्बन्धी सूत्र हैं।
छः प्रदेशी स्कन्ध अनन्त हैं । छः प्रदेशों में स्थित पुद्गल अनन्त हैं । छः समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं । छ: गुण काले-यावत् छ: गुण रूखे पुद्गल अनन्त हैं।
स्थान-६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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