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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक महावीर जब सिद्ध यावत् सर्वदुःख से मुक्त हुए उस समय चौविहार छट्ठ भक्त था। सूत्र- ५८३
सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प-देवलोक में विमान छ: सौ योजन ऊंचे हैं।
सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में भवधारणीय शरीर की अवगाहना-छ: हाथ की है। सूत्र- ५८४
भोजन का परिमाण-स्वभाव छः प्रकार का है, यथा-मनोज्ञ-मन को अच्छा लगने वाला । रसिक-माधुर्यादि रस युक्त । प्रीणनीय-तृप्ति करने वाला तथा शरीर के रसों में समता लाने वाला । बृंहणीय-शरीर की वृद्धि करनेवाला। दीपनीय-जठराग्नि प्रदीप्त करने वाला । मदनीय कामोत्तेजक ।
विष का परिणाम-स्वभाव छह प्रकार का है । यथा-दष्ट-सर्प आदि के डंक से पीड़ा पहुँचाने वाला । भुक्तखाने पर पीड़ा पहुँचाने वाला । निपतित-शरीर पर गिरते ही पीड़ित करने वाला अथवा दृष्टिविष । मांसानुसारी-माँसमें व्याप्त होनेवाला । शोणितानुसारी-रक्त में व्याप्त होनेवाला । अस्थिमज्जानुसारी-हड्डी और चरबीमें व्याप्त होनेवाला सूत्र- ५८५
प्रश्न छ: प्रकार के हैं, यथा-संशय प्रश्न-संशय होने पर किया जाने वाला प्रश्न । मिथ्याभिनिवेश प्रश्न-परपक्ष को दूषित करने के लिए किया गया प्रश्न । अनुयोगी प्रश्न-व्याख्या करने के लिए ग्रन्थकार द्वारा किया गया प्रश्न । अनुलोभ प्रश्न-कुशलप्रश्न । तथाज्ञानप्रश्न-गणधर गौतम के प्रश्न । अतथाज्ञान प्रश्न-अज्ञ व्यक्ति के प्रश्न । सूत्र-५८६
चमरचंचा राजधानी में उत्कृष्ट विरह छः मास का है। प्रत्येक इन्द्रप्रस्थ में उपपात विरह उत्कृष्ट छ: मास का है। सप्तम पृथ्वी तमस्तमा में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है।
सिद्धगति में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है। सूत्र-५८७
आयुबंध छः प्रकार का है, यथा-जातिनामनिधत्तायु-जातिनाम कर्म के साथ प्रति समय भोगने के लिए आयुकर्म के दलिकों की निषेक नाम की रचना । गतिमान निधत्तायु-गतिमान कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना । स्थितिनाम निधत्तायु-स्थिति की अपेक्षा से निषेक रचना । अवगाहना नाम निधत्तायु-जिसमें आत्मा रहे वह अवगाहना
औदारिक शरीर आदि की होती है । अतः शरीर नाम कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना । प्रदेश नाम निधत्तायु-प्रदेश रूप नाम कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना । अनुभाव नाम निधत्तायु-अनुभाव विपाक रूप नाम कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना ।
नैरयिकों के यावत् वैमानिकों के छः प्रकार का आयुबंध होता है । यथा-जातिनाम निधत्तायु-यावत् अनुभावनाम निधत्तायु । नैरयिक यावत् वैमानिक छ: मास आयु शेष रहने पर परभव का आयु बाँधते हैं। सूत्र-५८८
भाव छ: प्रकार के हैं, यथा-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक, सान्निपातिक । सूत्र-५८९
प्रतिक्रमण छ: प्रकार के हैं, यथा-उच्चार प्रतिक्रमण-मल को परठकर स्थान पर आवे और मार्ग में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करे । प्रश्रवण प्रतिक्रमण-मूत्र परठकर पूर्ववत् प्रतिक्रमण करे । इत्वरिक प्रतिक्रमण-थोड़े काल का प्रतिक्रमण, यथा-दिन सम्बन्धी प्रतिक्रमण या रात्रि सम्बन्धी प्रतिक्रमण । यावज्जीवन का प्रतिक्रमण-महाव्रत ग्रहण करना अथवा भक्तपरिज्ञा स्वीकार करना । यत्किंचित् मिथ्या प्रतिक्रमण-जो मिथ्या आचरण हुआ हो उसका प्रतिक्रमण । स्वाप्नान्तिक प्रतिक्रमण-स्वप्न सम्बन्धी प्रतिक्रमण । सूत्र- ५९०
कृत्तिका नक्षत्र के छः तारे हैं । अश्लेषा नक्षत्र के छः तारे हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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