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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-५६९
अभिचन्द्र कुलकर छ: सौ धनुष के ऊंचे थे। सूत्र- ५७०
भरत चक्रवर्ती छह लाख पूर्व तक महाराजा रहे । सूत्र- ५७१
भगवान पार्श्वनाथ के छ: सौ वादी मुनियों की संपदा थी वे वादी मुनि देव-मनुष्यों की परीषद में अजेय थे। वासुपूज्य अर्हन्त के साथ छ: सौ पुरुष प्रव्रजित हुए।
चन्द्रप्रभ अर्हन्त छ: मास पर्यन्त छद्मस्थ रहे। सूत्र- ५७२
तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वाला छह प्रकार के संयम का पालन करता है । यथा-गंध ग्रहण का सुख नष्ट नहीं होता । गंध का दुःख प्राप्त नहीं होता । रसास्वादन का सुख नष्ट नहीं होता । रसास्वादन न कर सकने का दुःख प्राप्त नहीं होता । स्पर्शजन्य सुख नष्ट नहीं होता । स्पर्शानुभव न होने का दुःख प्राप्त नहीं होता।
तेइन्द्रिय जीवों की हिंसा करने से छह प्रकार का असंयम होता है । यथा-गंध ग्रहण जन्य सुख प्राप्त नहीं होता । गंध ग्रहण न कर सकने का दुःख प्राप्त होता है । रसास्वादन जन्य सुख प्राप्त नहीं होता । रसास्वादन न कर सकने का दुःख प्राप्त होता है । स्पर्शजन्य सुख प्राप्त नहीं होता । रसास्वादन न कर सकने का दुःख प्राप्त होता है। स्पर्शजन्य सुख प्राप्त नहीं होता । स्पर्शानुभव न कर सकने का सुख प्राप्त होता है। सूत्र- ५७३
जम्बूद्वीप में छह अकर्मभूमियाँ हैं, यथा-हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्वर्ष, देवकुरु, उत्तरकुरु । जम्बूद्वीप में छह वर्ष (क्षेत्र) हैं, यथा-भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष । जम्बूद्वीप में छह वर्षधर पर्वत हैं, यथा-चुल्ल (लघु) हिमवंत, महा हिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मि, शिखरी
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में छः कूट (शिखर) हैं । यथा-चुल्ल हैमवंत-कूट, वैश्रमण कूट, महा हैमवत कूट, वैडूर्य कूट, निषध कूट, रुचक कूट ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत से उत्तर दिशा में छह कूट हैं । यथा-नीलवान कूट, उपदर्शन कूट, रुक्मिकूट, मणिकंचन कूट, शिखरी कूट, तिगिच्छ कूट ।
जम्बूद्वीप में छह महाद्रह हैं, यथा-पद्मद्रह, महा पद्मद्रह, तिगिच्छद्रह, केसरीद्रह, महा पौंडरीक द्रह, पौंडरीक द्रह । उन महाद्रहों में छह पल्योपम की स्थिति वाली छ: महर्धिक देवियाँ रहती हैं । यथा-१. श्री, २. ह्री, ३. धृति, ४. कीर्ति, ५. बुद्धि, ६. लक्ष्मी।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से दक्षिण दिशा में छ: महानदियाँ हैं । यथा-गंगा, सिंधु, रोहिता, रोहितांशा, हरी, हरिकांता। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से उत्तर दिशा में छ: महानदियाँ हैं, यथा-नरकांता, नारीकांता, सुवर्णकूला, रूप्य-कूला, रक्ता, रक्तवती । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से पूर्व में सीता महानदी के दोनों किनारों पर छः अन्तर नदियाँ हैं, यथा-ग्राहवती, द्रहवती, पंकवती, तप्तजला, मत्तजला, उन्मत्तजला । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु से पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर छ: अन्तरनदियाँ हैं। यथा-क्षीरोदा, सिंहश्रोता, अंतर्वाहिनी, उर्मिमालिनी, फेनमालिनी, गम्भीर-मालिनी।
धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में छह अकर्म भूमियाँ हैं, यथा-हैमवत आदि नदी-सूत्र पर्यन्त जम्बूद्वीप के समान रह-सूत्र कहें । धातकीखण्ड के पश्चिमार्ध में जम्बूद्वीप के समान ग्यारह सूत्र हैं । पुष्करवर द्वीपा के पूर्वार्ध में जम्बूद्वीप के समान ग्यारह सूत्र हैं । पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में जम्बूद्वीप के समान ग्यारह सूत्र हैं। सूत्र - ५७४
ऋतुएं छः हैं, यथा-प्रावृट्-आषाढ़ और श्रावण मास । वर्षा ऋतु-भाद्रपद और आश्विन । शरद् कार्तिक और मार्गशीर्ष । हेमन्त-पोष और माघ । बसन्त-फाल्गुन और चैत्र । ग्रीष्म-वैशाख और ज्येष्ठ ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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