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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक संमर्दा-मर्दन करके प्रतिलेखना करना, मोसली-वस्त्र के ऊपर के नीचे के या तिर्यक् भाग को प्रतिलेखन करते हुए परस्पर छुहाना । प्रस्फोटना-वस्त्र की रज को भड़काना । विक्षिप्ता-प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों पर रखना । वेदिका-प्रतिलेखना करते समय विधिवत् न बैठना सूत्र- ५५३, ५५४
अप्रमाद प्रतिलेखना छह प्रकार की है, यथा- अनर्तिता-शरीर या वस्त्र को न नचाते हुए प्रतिलेखना करना। अवलिता-वस्त्र या शरीर को झुकाये बिना प्रतिलेखना करना । अनानुबंधि-उतावल या झटकाये बिना प्रतिलेखना करना । अमोसली-वस्त्र को मसले बिना प्रतिलेखना करना । छ: पुरिमा और नव खोटका। सूत्र- ५५५
लेश्याएं छः हैं, यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । तिर्यंच पंचेन्द्रियों में छह लेश्याएं हैं, यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या । मनुष्य और देवताओं में छः लेश्याएं हैं, यथा-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। सूत्र - ५५६
शक्र देवेन्द्र देवराज सोम महाराजा की छः अग्रमहिषियाँ हैं। सूत्र - ५५७
ईशान देवेन्द्र की मध्यम परीषद के देवों की स्थिति छः पल्योपम की है। सूत्र- ५५८
छः श्रेष्ठ दिक्कुमारियाँ हैं, यथा-रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, रूपकांता, रूपप्रभा । छः श्रेष्ठ विद्युत्कुमारियाँ हैं, आला, शुक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घनविद्युता। सूत्र- ५५९
धरण नागकुमारेन्द्र की छः अग्रमहिषियाँ हैं । यथा-आला, शुक्रा, सतेरा, सौदामिनी, इन्द्रा, घनविद्युता । भूतानन्द नागकुमारेन्द्र की छः अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती, रूपकांता, रूपप्रभा । घोष पर्यन्त दक्षिण दिशा के सभी देवेन्द्रों की अग्रमहिषियों के नाम धरणेन्द्र के समान हैं। महाघोष पर्यन्त उत्तर दिशा के सभी देवेन्द्रों की अग्रमहिषियों के नाम भूतानन्द के समान हैं। सूत्र- ५६०
धरण नागकुमारेन्द्र के छः हजार सामानिक देव हैं । इसी प्रकार भूतानन्द यावत् महाघोष नागकुमारेन्द्र के छः हजार सामानिक देव हैं। सूत्र-५६१
अवग्रहमति छः प्रकार की है, यथा-१. क्षिप्रा-क्षयोपशम की निर्मलता से शंख आदि के शब्द को शीघ्र ग्रहण करने वाली मति । २. बहु-शंख आदि अनेक प्रकार के शब्दों को ग्रहण करने वाली मति । ३. बहुविध-शब्दों के माधुर्य आदि पर्यायों को ग्रहण करने वाली मति । ४. ध्रुव-एक बार धारण किये हुए अर्थ को सदा के लिए स्मरण में रखने वाली मति । ५. अनिश्रित-ध्वजादि चिह्न के बिना ग्रहण करने वाली मति । ६. असंदिग्ध-संशय रहित ग्रहण करने वाली मति।
ईहामति छ: प्रकार की है, यथा-क्षिप्र ईहामति-शीघ्र विचार करने वाली मति-यावत्-संदेह रहित विचार करने वाली मति।
अवायमति छ: प्रकार की है। यथा-शीघ्र निश्चय करने वाली मति यावत् संदेह रहित निश्चय करने वाली मति ।
धारण छः प्रकार की है, यथा-१. बहु धारणा-बहुत धारण करने वाली मति । २. बहुविध धारणा-अनेक प्रकार से धारण करने वाली मति । ३. पुराण धारणा-पुराणो को धारण करने वाली मति । ४. दुर्धर धारणा-गहन विषयों को धारण करने वाली मति । ५. अनिश्रित धारणा-ध्वजा आदि चिह्नों के बिना धारण करने वाली मति । ६. असंदिग्ध धारणा-संशय बिना धारण करने वाली मति ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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