Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 105
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-५२९ श्रोत्रेन्द्रिय का विषय यावत्-स्पर्शेन्द्रिय का विषय, मन का विषय। सूत्र - ५३० संवर छः प्रकार के हैं, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय संवर यावत् स्पर्शन्द्रिय संवर और मन संवर | असंवर (आश्रव) छः प्रकार के हैं, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय असंवर-यावत् स्पर्शेन्द्रिय असंवर, और मन असंवर । सूत्र- ५३१ __सुख छः प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का सुख यावत् स्पर्शेन्द्रिय का सुख, और मन का सुख । दुःख छः प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का दुःख यावत् स्पर्शेन्द्रिय का दुःख, और मन का दुःख । सूत्र- ५३२ प्रायश्चित्त छः प्रकार का है, यथा-आलोचना योग्य-गुरु के समक्ष सरलतापूर्वक लगे हुए दोष को स्वीकार करना । प्रतिक्रमण योग्य-लगे हुए दोष की निवृत्ति के लिए पश्चात्ताप करना और पुनः दोष न लगे ऐसी सावधानी रखना । उभय योग्य-आलोचन और प्रतिक्रमण योग्य । विवेक योग्य-आधाकर्म आदि आहार को परठकर शुद्ध होना व्युत्सर्ग योग्य-कायचेष्टा का निरोध करके शुद्ध होना । तप योग्य-विशिष्ट तप करके शुद्ध होना। सूत्र- ५३३ मनुष्य छः प्रकार के हैं, यथा-जम्बूद्वीप में उत्पन्न । धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में उत्पन्न । धातकी खण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में उत्पन्न । पुष्करवरद्वीपा के पूर्वार्ध में उत्पन्न । पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में उत्पन्न । अन्तर द्वीपों में उत्पन्न । अथवा मनुष्य छः प्रकार के हैं, यथा-सम्मूर्छिम मनुष्य कर्म भूमि में उत्पन्न । सम्मूर्छिम मनुष्य अकर्मभूमि में उत्पन्न । सम्मूर्छिम मनुष्य अन्तरद्वीपों में उत्पन्न । गर्भज मनुष्य कर्मभूमि में उत्पन्न । गर्भज मनुष्य अकर्मभूमि में उत्पन्न । गर्भज मनुष्य अन्तरद्वीपों में उत्पन्न । सूत्र-५३४ ऋद्धिमान मनुष्य छ: प्रकार के हैं, यथा-अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारण, विद्याधर । ऋद्धिरहित मनुष्य छ: प्रकार के हैं, यथा-हेमवन्त क्षेत्र के । हैरण्यवन्त क्षेत्र के । हरिवर्ष क्षेत्र के । रम्यक् क्षेत्र के । देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के । अन्तरद्वीपों के । सूत्र - ५३५ अवसर्पिणी काल छः प्रकार का है, सुषम-सुषमा यावत् दुषम-दुषमा । उत्सर्पिणी काल छः प्रकार का है, यथा-दुषम दुःषमा यावत् सुषम सुषमा । सूत्र- ५३६ जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में अतीत उत्सर्पिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्य छः हजार धनुष के ऊंचे थे, और उनका परमायु तीन पल्योपमों का था । जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में इस उत्सर्पिणी के सुषमसुषमा काल में मनुष्यों की ऊंचाई और उनका परमायु पूर्ववत् ही था । जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में आगामी उत्सर्पिणी के सुषम-सुषमा काल में मनुष्यों की ऊंचाई और उनका परमायु पूर्ववत् ही होगा । जम्बूद्वीप-वर्ती देवकुरु उत्तर कुरुक्षेत्रों में मनुष्यों की ऊंचाई और उनका परमायु पूर्ववत् ही है । इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में पूर्ववत् चार आलापक हैं-यावत् पुष्करवर द्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में भी पूर्ववत् चार आलापक हैं। सूत्र - ५३७ संघयण छः प्रकार के हैं, यथा-वज्रऋषभनाराच संहनन, ऋषभनाराच संहनन, नाराच संहनन, अर्धनाराच संहनन, कीलिका संहनन, सेवार्त संहनन । सूत्र-५३८ संस्थान छः प्रकार के हैं, यथा-सम चतुरस्र संस्थान, न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान, साती संस्थान, कुब्ज मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 105

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