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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक
स्थान-६ सूत्र- ५१८
छ: स्थान युक्त अणगार गण का अधिपति हो सकता है । यथा-श्रद्धालु, सत्यवादी, मेघावी, बहुश्रुत, शक्ति सम्पन्न, क्लेशरहित। सूत्र - ५१९
छ: कारणों से निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी को पकड़कर रखे या सहारा दे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता । यथा-विक्षिप्त को, क्रुद्ध को, यक्षाविष्ट को, उन्मत्त को, उपसर्ग युक्त को, कलह करती हुई को। सूत्र-५२०
छ: कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ कालगत साधर्मिक के प्रति आदरभाव करे तो आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता है । यथा-उपाश्रय से बाहर नीकलना हो, उपाश्रय से बाहर से जंगल में ले जाना हो, मृत को बाँधना हो, जागरण करना हो, अनुज्ञापन कना हो, चूपचाप साथ जावे तो। सूत्र- ५२१
छ: स्थान छद्मस्थ पूर्ण रूप से नहीं जानता है और नहीं देखता है । यथा-धर्मास्तिकाय को, अधर्मास्तिकाय को, आकाशास्तिकाय को, शरीर रहित जीव को, परमाणु पुद्गल को, शब्द को । इन्हीं छः स्थानों को केवलज्ञानी अर्हन्त जिन पूर्णरूप से जानते हैं और देखते हैं । यथा-१. धर्मास्तिकाय को-यावत् शब्द को। सूत्र - ५२२
छ: कारणों से जीवों को ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य और पराक्रम प्राप्त नहीं होता है । यथा-जीव को अजीव करना चाहे तो, अजीव को जीव करना चाहे तो, सच और झूठ एक साथ बोले तो, स्वकृत कर्म भोगे या न भोगे-ऐसा माने तो, परमाणु को छेदन-भेदन करना चाहे अथवा अग्नि से जलाना चाहे तो, लोक से बाहर जाने तो। सूत्र- ५२३
छः जीव निकाय हैं, यथा-पृथ्वीकाय यावत् त्रसकाय । सूत्र-५२४
छ: ग्रह छः छः तारा वाले हैं, यथा-शुक्र, बुध, बृहस्पति, अंगारक, शनैश्चर, केतु । सूत्र- ५२५
संसारी जीव छः प्रकार के हैं, यथा-पृथ्वीकायिक यावत्-त्रसकायिक । पृथ्वीकायिक जीव छः गति और छः आगति वाले हैं, यथा-१. पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय में उत्पन्न होते हैं तो पृथ्वीकायिकों से-यावत्-त्रस-कायिकों से उत्पन्न होते हैं । वही पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकपने को छोड़कर पृथ्वीकायिकपने को यावत्-त्रसकायिकपने को प्राप्त होता है । अप्कायिक जीव छ: गति और छ: आगति वाले हैं। इसी प्रकार यावत् त्रस-कायिक पर्यन्तक है। सूत्र-५२६
जीव छ: प्रकार के हैं, यथा-आभिनिबोधिक ज्ञानी-यावत्-केवलज्ञानी और अज्ञानी ।
अथवा जीव छ: प्रकार के हैं, यथा-१. औदरिक शरीरी, २. वैक्रिय शरीरी, ३. आहारक शरीरी, ४. तैजस शरीरी, ५. कार्मण शरीरी, ६. अशरीरी। सूत्र- ५२७
तृण वनस्पतिकाय छ: प्रकार के हैं, यथा-१. अग्रबीज, २. मूलबीज, ३. पर्वबीज, ४. स्कन्धबीज, ५. बीज-रूह, ६. सम्मूर्छिम। सूत्र- ५२८
छ: स्थान सब जीवों को सुलभ नहीं है, मनुष्यभव, आर्यक्षेत्र में जन्म, सुकुल में उत्पत्ति, केवली कथित धर्म का श्रवण, श्रुत धर्म पर श्रद्धा, अद्धित, प्रतीत और रोचित धर्म का आचरण । छ: इन्द्रियों के छः विषय हैं । यथा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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