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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक संस्थान, वामन संस्थान, हुण्ड संस्थान । सूत्र- ५३९
___ अनात्मभाववर्ती (कषाययुक्त) मनुष्यों के लिए ये छह स्थान अहितकर हैं, अशुभ हैं, अशांति मिटाने में असमर्थ हैं, अकल्याणकर हैं, और अशुभ परम्परा वाले हैं, यथा-आयु, परिवार-पुत्रादि, या शिष्यादि, श्रुत, तप, लाभ, और पूजा-सत्कार।
आत्मभाववर्ती (कषायरहित) मनुष्यों के लिए उक्त छह स्थान हितकर हैं,शुभ हैं, अशान्ति मिटाने में समर्थ हैं, कल्याणकर हैं, और शुभ परम्परा वाले हैं, यथा-पर्याय यावत् पूजा-सत्कार | सूत्र- ५४०,५४१
जाति आर्य मनुष्य छ: प्रकार के हैं । यथा- अंबष्ठ, कलंद, वैदेह, वेदगायक, हरित और चुंचण। सूत्र - ५४२
कुलार्य मनुष्य छ: प्रकार के हैं, यथा-उग्र कुल के, भोग कुल के, राजन्य कुल के, इक्ष्वाकु कुल के, ज्ञात कुल के और कौरव कुल के। सूत्र- ५४३
__ लोक स्थिति छः प्रकार की है, यथा-आकाश पर वायु, वायु पर उदधि, उदधि पर पृथ्वी, पृथ्वी पर त्रस और स्थावर प्राणी, जीव के सहारे अजीव, कर्म के सहारे जीव । सूत्र- ५४४
दिशाएं छः हैं यथा-पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर, ऊर्ध्व, अधो ।
उक्त छह दिशाओं में जीवों की गति होती है । इसी प्रकार जीवों की आगति, व्युत्क्रान्ति, आहार, शरीर की वृद्धि, शरीर की हानि, शरीर की विकुर्वणा, गतिपर्याय, वेदनादि समुद्घात, दिन-रात आदि काल का संयोग, अवधि आदि दर्शन से सामान्य ज्ञान, अवधि आदि ज्ञान से विशेष ज्ञान, जीवस्वरूप का प्रत्यक्ष ज्ञान, पुद्गलादि अजीवस्वरूप का प्रत्यक्ष ज्ञान । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के और मनुष्यों के चौदह-चौदह सूत्र हैं। सूत्र- ५४५, ५४६
छ: कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ के आहार करने पर भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता, यथा
क्षुधा शान्त करने के लिए, सेवा करने के लिए, इर्या समिति के शोधन के लिए, संयम की रक्षा के लिए, प्राणियों की रक्षा के लिए, धर्म चिन्तन के लिए। सूत्र-५४७
छ: कारण से श्रमण निर्ग्रन्थ के आहार त्यागने पर भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता । यथासूत्र- ५४८
आतंक-ज्वरादि की शांति के लिए, उपसर्ग-राजा या स्वजनों द्वारा उपसर्ग किये जाने पर, तितिक्षा-सहिष्णु बनने के लिए, ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए, प्राणियों की रक्षा के लिए, शरीर त्यागने के लिए। सूत्र- ५४९
छ कारणों से आत्मा उन्माद को प्राप्त होता है, यथा-अर्हन्तों का अवर्णवाद बोलने पर, अर्हन्त प्रज्ञप्त धर्म का अवर्णवाद बोलने पर, आचार्य और उपाध्यायों के अवर्णवाद बोलने पर, चतुर्विध संघ का अवर्णवाद बोलने पर, यक्षाविष्ट होने पर, मोहनीय कर्म का उदय होने पर। सूत्र- ५५०
प्रमाद छ: प्रकार का है, यथा-१. मद्य, २. निद्रा, ३. विषय, ४. कषाय, ५. द्यूत, ६. प्रतिलेखना में प्रमाद । सूत्र- ५५१,५५२
प्रमाद पूर्वक की गई प्रतिलेखना छः प्रकार की है, यथा- आरभटा-उतावल से प्रतिलेखना करना,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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