Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 45
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक श्रुतादि ज्ञान-रहित मनुष्य एक नेत्र वाले हैं देव दो नेत्र वाले हैं, तथारुप श्रमण तीन नेत्र वाले हैं। सूत्र-२२७ तीन प्रकार का अभिसमागम विशिष्ट ज्ञान हैं, यथा-ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक् । जब किसी तथारूप श्रमण - माहण को विशिष्ट ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होता है तब वह सर्व प्रथम ऊर्ध्वलोक तो जानता है तदनन्तर तिर्यक् लोक को, उसके पश्चात् अधोलोक को जानता है। हे श्रमण आयुष्मन् ! अधोलोक का ज्ञान कठिनाई से होता है। सूत्र-२२८ ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-देवर्द्धि, राजर्द्धि और गण के अधिपति आचार्य की ऋद्धि । देव की ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है, यथा-विमानों की ऋद्धि, वैक्रिय की ऋद्धि, परिचार विषयभोग की ऋद्धि । अथवा-देवर्द्धि तीन प्रकार की है यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र । राजा की ऋद्धि तीन प्रकार की है, यथा-राजा की अतियान ऋद्धि, राजा की नियान ऋद्धि, राजा की सेना, वाहन कोष, कोष्ठागार आदि की ऋद्धि । अथवा-राजा की ऋद्धि तीन प्रकार की है, यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र ऋद्धि । गणी (आचार्य) की ऋद्धि तीन प्रकार की है, यथाज्ञान की ऋद्धि, दर्शन की ऋद्धि और चारित्र की ऋद्धि । अथवा-गणी की ऋद्धि तीन प्रकार की है, यथा-सचित्त, अचित्त और मिश्र। सूत्र - २२९ तीन प्रकार के गौरव हैं, ऋद्धि-गौरव, रस-गौरव और साता-गौरव । सूत्र-२३० तीन प्रकार के करण (अनुष्ठान) कहे गए हैं, यथा-धार्मिक करण, अधार्मिक करण और मिश्र करण। सूत्र - २३१ भगवान ने तीन प्रकार का धर्म कहा है, यथा-सु-अधीत अच्छी तरह ज्ञान प्राप्त करना सु-ध्यात अच्छी तरह भावनादी का चिन्तन करना सु-तपस्थित तप का अनुष्ठान अच्छी तरह करना । जब अच्छी तरह अध्ययन होता है तो अच्छी तरह ध्यान और चिन्तन हो सकता है, जब अच्छी तरह ध्यान और चिन्तन होता है तब श्रेष्ठ तप का आराधन होता है इसी प्रकार सु-अधीत, सु-ध्यान और सु-तपस्थित रूप सु-आख्यान धर्म भगवान ने प्ररूपित किया है। सूत्र - २३२ व्यावृत्ति हिंसादि से निवृत्ति तीन प्रकार की कही गई है, यथा-ज्ञानयुक्त की जाने वाली व्यावृत्ति, अज्ञान से की जाने वाली व्यावृत्ति, संशय से की जाने वाली व्यावृत्ति । इसी तरह पदार्थों में आसक्ति और पदार्थों का ग्रहण भी तीन तीन प्रकार का है। सूत्र - २३३ तीन प्रकार के अन्त कहे गए हैं, यथा-लोकान्त, वेदान्त और समयान्त । लौकिक अर्थशास्त्र आदि से निर्णय करना लोकान्त है, वेदों के अनुसार निर्णय करना वेदान्त है, जैन सिद्धान्तों के अनुसार निर्णय करना समयान्त है। सूत्र - २३४ जिन तीन प्रकार के कहे गए हैं, अवधिज्ञानी जिन, मनःपर्यवज्ञानी जिन और केवलज्ञानी जिन । तीन केवली कहे गए हैं, यथा-अवधिज्ञानी केवली, मनःपर्यवज्ञानी केवली और केवलज्ञानी केवली। तीन अर्हन्त कहे गए हैं, यथा-अवधिज्ञानी अर्हन्त, मनःपर्यवज्ञानी अर्हन्त और केवलज्ञानी अर्हन्त । सूत्र - २३५ तीन लेश्याएं दुर्गन्ध वाली कही गई हैं, यथा-कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या । तीन लेश्याएं सुगंध वाली कही गई हैं, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या, शुक्ललेश्या । इसी तरह दुर्गति में ले जाने वाली, सुगति में ले जाने वाली लेश्या, अशुभ, शुभ, अमनोज्ञ, मनोज्ञ, अविशुद्ध, विशुद्ध, क्रमशः अप्रशस्त, प्रशस्त, शीतोष्ण और स्निग्ध, रूक्ष समझना। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 45

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