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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र - ३, 'स्थान'
स्थान / उद्देश / सूत्रांक
सूत्र - ४१५
अर्हन्त अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) के चार सौ चौदह पूर्वधारी श्रमणों की उत्कृष्ट सम्पदा थी। वे जिन न होते हुए भी जिनसदृश थे। जिन की तरह पूर्ण यथार्थ वक्ता थे और सर्व अक्षर संयोगों के पूर्ण ज्ञाता थे ।
सूत्र - ४१६
श्रमण भगवान महावीर के चार सौ वादी मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा थी। वे देव, मनुष्य, असुरों की परीषद में कदापि पराजित होने वाले न थे ।
सूत्र - ४१७
नीचे के चार कल्प अर्ध चन्द्राकार हैं। यथा-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र ।
मध्य के चार कल्प पूर्ण चन्द्राकार हैं। यथा- ब्रह्मलोक, लांतक, महाशुक्र और सहस्रार । ऊपर के चार कल्प अर्ध चन्द्राकार हैं। यथा-आनत, प्राणत, आरण और अच्युत ।
सूत्र - ४१८
चार समुद्रों में से प्रत्येक समुद्र के पानी का स्वाद भिन्न-भिन्न प्रकार का है । यथा-लवण समुद्र के पानी का स्वाद लवण जैसा खारा है । वरुणोद समुद्र के पानी का स्वाद मद्य जैसा है। क्षीरोद समुद्र के पानी का स्वाद दूध जैसा है । घृतोद समुद्र के पानी का स्वाद घी जैसा है ।
सूत्र- ४१९
आवर्त चार प्रकार के हैं। यथा-खरावर्त समुद्र में चक्र की तरह पानी का घूमना । उन्नतावर्त पर्वत पर चक्र की तरह घूमकर चढ़ने वाला मार्ग गूढ़ावर्त-दड़ी पर रस्सी से की जाने वाली गूंथन आमिषावर्त माँस के लिए आकाश में पक्षियों का घूमना ।
कषाय चार प्रकार के हैं । यथा - खरावर्त समान क्रोध । उन्नतावर्त समान मान । गूढ़ावर्त समान माया । आमिषावर्त समान लोभ ।
खरावर्त समान क्रोध करने वाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है ।
इसी प्रकार उन्नतावर्त समान मान करने वाला जीव । गूढ़ावर्त समान माया करने वाला जीव और आमिषावर्त समान लोभ करने वाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है ।
सूत्र - ४२०
अनुराधा नक्षत्र के चार तारे हैं। इसी प्रकार पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के चार-चार तारे हैं।
सूत्र - ४२१
चार स्थानों में संचित पुद्गल पाप कर्म रूप में एकत्र हुए हैं, होते हैं और भविष्य में भी होंगे । यथा-नारकीय जीवन में एकत्रित पुद्गल । तिर्यंच जीवन में एकत्रित पुद्गल । मनुष्य जीवन में एकत्रित पुद्गल । देव जीवन में एकत्रित पुद्गल । इसी प्रकार पुद्गलों का उपचय, बंध, उदीरण, वेदन और निर्जरा के एक-एक सूत्र कहें।
सूत्र - ४२२
चार प्रदेश वाले स्कन्ध अनेक हैं। चार आकाश प्रदेश में रहे हुए पुद्गल अनन्त हैं। चार गुण वाले पुद्गल अनन्त हैं । चार गुण रुखे पुद्गल अनन्त हैं ।
स्थान- ४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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