Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 94
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक क्रुद्ध राजा आदि के भय से । दुष्काल होने पर । अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर । बाढ़ के प्रवाह में बहते हुए व्यक्तियों को नीकालने के लिए। किसी महान् अनार्य द्वारा पीड़ित किये जाने पर। सूत्र-४५१ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को प्रावृट् ऋतु (प्रथम वर्षा) में ग्रामानुग्राम विहार करना नहीं कल्पता है, किन्तु पाँच कारणों से कल्पता है । यथा-क्रुद्ध राजा आदि के भय से । दुष्काल होने पर यावत् किसी महान् अनार्य द्वारा पीड़ा पहुँचाये जाने पर। वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को एक गाँव से दूसरे गाँव जाने के लिए विहार करना नहीं कल्पता है। पाँच कारणों से विहार करना कल्पता है, यथा-ज्ञान प्राप्ति के लिए, दर्शन-सम्यक्त्व की पुष्टि के लिए, चारित्र की रक्षा के लिए, आचार्य या उपाध्याय के मरने पर अन्य आचार्य या उपाध्याय के आश्रय में जाने के लिए । आचार्यादि द्वारा या अन्यत्र रहे हए आचार्यादि की सेवा के लिए भेजने पर। सूत्र - ४५३ पाँच अनुद्घातिक (महा प्रायश्चित्त देने योग्य) कहे गए हैं, यथा-हस्त कर्म करने वाले को, मैथुन सेवन करने वाले को, रात्रि भोजन करने वाले को, सागारिक के घर से लाया हुआ आहार खाने वाले को । राजपिंड़ खाने वाले को। सूत्र - ४५४ पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में प्रवेश करे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। यथा-पर सैन्य से घिर गया हो या आक्रमण के भय से नगर के द्वार बन्द कर दिये गए हों और श्रमण ब्राह्मण आहार - पानी के लिए कहीं आ जान सकते हों तो श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में सूचना देने के लिए जा सकता है। प्राति-हारिक (जो वस्तु लाकर वापस दी जाए) पीठ, फलक, संस्तारक आदि वस्तुएं देने के लिए श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में जा सकता है। दुष्ट अश्व या उन्मत्त हस्ति के सामने आने पर भयभीत श्रमण निर्ग्रन्थ अन्तःपुर में जा सकता है । कोई जबरदस्त हाथ पकड़कर श्रमण निर्ग्रन्थ को अन्तःपुर में ले जावे तो जा सकता है। नगर से बाहर उद्यान में गये हुए श्रमण को यदि अन्तःपुर वाले घेरकर क्रीड़ा करे तो वह श्रमण अन्तःपुर में प्रविष्ट ही माना जाता है। सूत्र-४५५ पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास न करने पर भी गर्भ धारण कर लेती है, यथा-जिस स्त्री की योनि अनावृत्त हो और वह जहाँ पर पुरुष का वीर्य स्खलित हआ है ऐसे स्थान पर इस प्रकार बैठे की जिससे शुक्राणु योनि में प्रविष्ट हो जाए तो-शुक्र लगा हुआ वस्त्र योनि में प्रवेश करे तो-जानबूझकर स्वयं शुक्र को योनि में प्रविष्ट करावे तोदूसरे के कहने से शुक्राणुओं को योनि में प्रवेश करे तो-नदी नाले के शीतल जल में आचमन के लिए कोई स्त्री जावे और उस समय उसकी योनि में शुक्राणु प्रविष्ट हो जाए तो - पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास करने पर भी गर्भ धारण नहीं करती है, यथा-जिसे युवावस्था प्राप्त नहीं हुई है, वह जिसकी युवावस्था बीत गई है, वह जो जन्म से वन्ध्या हो, वह जो रोगी हो, वह जिसका मन शोक से संतप्त हो। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष साथ सहवास करने पर भी गर्भ धारण नहीं करती है । यथा-जिसे नित्य रजस्राव होता है, वह जिसे कभी रजस्राव नहीं होता है, वह जिसके गर्भाशय का द्वार रोग से बन्द हो गया हो, वह जिसके गर्भाशय का द्वार रोगग्रसित हो, वह जो अनेक पुरुषों के साथ अनेक बार सहवास करती हो, वह। पाँच कारणों से स्त्री पुरुष के साथ सहवास करने पर भी गर्भ धारण नहीं करती है । यथा-रजस्राव काल में पुरुष के साथ विधिवत् सहवास न करने वाली । योनि-दोष से शुक्राणुओं के नष्ट होने पर । जिसका पित्त प्रधान रक्त हो वह । गर्भ धारण से पूर्व देवता द्वारा शक्ति नष्ट किये जाने पर । संतान होना भाग्य में न हो तो। सूत्र - ४५५ पाँच कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियाँ एक जगह ठहरे, सोये या बैठे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद” Page 94

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