Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 48
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक स्थान-४ उद्देशक-१ सूत्र- २४९ चार प्रकार की अन्त क्रियाएं कही गई हैं, उनमें प्रथम अन्तक्रिया इस प्रकार है-कोई अल्पकर्मा व्यक्ति मनुष्यभव में उत्पन्न होता है, वह मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनगार धर्म में प्रव्रजित होने पर उत्तम संयम, संवर और समाधि का पालन करने वाला रूक्षवृत्ति वाला संसार को पार करने का अभिलाषी; शास्त्राध्ययन के लिए तप करने वाला, दुःख का क्षय करने वाला, तपस्वी होता है । उसे घोर तप नहीं करना पड़ता है और न उसे घोर वेदना होती है। (क्योंकि वह अल्पकर्मा ही उत्पन्न हुआ है)। ऐसा पुरुष दीर्घायु भोगकर सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, निर्वाण प्राप्त करता है और सब दुःखों का अन्त करता है । जैसे-चातुरन्त चक्रवर्ती भरत राजा । यह पहली अन्तक्रिया दूसरी अन्तक्रिया इस प्रकार है-कोई व्यक्ति अधिक कर्म वाला मनुष्य-भव में उत्पन्न होता है, वह मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनगार-धर्म में प्रव्रजित होकर संयम युक्त; संवर युक्त यावत्-उपधान-वान, दुःख का क्षय करने वाला और तपस्वी होता है । उसे घोर तप करना पड़ता है और उसे घोर वेदना होती है । ऐसा पुरुष अल्प आयु भोगकर सिद्ध होता है यावत्-दुःखों का अन्त करता है, जैसे गजसुकुमार अणगार।। तीसरी अन्तक्रिया इस प्रकार है-कोई अल्पकर्मा व्यक्ति मनुष्य-भव में उत्पन्न होता है, वह मुण्डित होकर अगार अवस्था से अनगारधर्म में दीक्षित हुआ, जैसे दूसरी अन्तक्रिया में कहा उसी तरह सर्व कथन करना चाहिए, विशेषता यह है कि वह दीर्घायु भोगकर होता है यावत्-सब दुःखों का अन्त करता है । जैसे चातुरन्त चक्रवर्ती राजा सनत्कुमार। ___चौथी अन्तक्रिया इस प्रकार है-कोई अल्पकर्मा व्यक्ति मनुष्य-भवमें उत्पन्न होता है । वह मुण्डित हो कर यावत्-दीक्षा लेकर उत्तम संयम का पालन करता है यावत् न तो उसे घोरतप करना पड़ता है, न उसे घोर वेदना सहनी पड़ती है। ऐसा पुरुष अल्पायु भोगकर सिद्ध होता है-यावत् सब दुःखों का अन्त करता है। जैसे भगवती मरुदेवी। सूत्र - २५० चार प्रकार के वृक्ष कहे गए हैं, यथा-कितनेक द्रव्य से भी ऊंचे और भाव से भी ऊंचे, कितनेक द्रव्य से ऊंचे किन्तु भाव से नीचे, कितनेक द्रव्य से नीचे किन्तु भाव से ऊंचे, कितनेक द्रव्य से भी नीचे और भाव से भी नीचे । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-कितनेक द्रव्य से जाति से उन्नत और गुण से भी उन्नत इस प्रकार यावत् -द्रव्य से भी हीन और गुण से भी हीन।। चार प्रकार के वृक्ष कहे गए हैं, यथा-कितनेक वृक्ष ऊंचाई में उन्नत होते हैं और शुभ रस वाले होते हैं । कितनेक वृक्ष ऊंचाई में उन्नत होते हैं परन्तु अशुभ रस वाले होते हैं । कितनेक वृक्ष ऊंचाई में अवनत और रसादि में उन्नत होते हैं। कितनेक वृक्ष ऊंचाई में भी अवनत और रसादि में भी अवनत होते हैं । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-द्रव्य से भी उन्नत और गुण-परिणमन से भी उन्नत । इत्यादि चार भंग। चार प्रकार के वृक्ष कहे गए हैं, कितनेक ऊंचाई में भी ऊंचे और रूप में भी उन्नत । इत्यादि चार भंग । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-कितनेक द्रव्यादि से उन्नत होते हुए रूप से भी उन्नत हैं । इत्यादि चार भंग | चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-द्रव्यादि से उन्नत होते हुए उन्नत मन वाले यावत्-चार भंग । इसी प्रकार संकल्प प्रज्ञा, दृष्टि, शीलाचार, व्यवहार, पराक्रम, सब के चार भंग समझ लेने चाहिए । इन मन सूत्रों में पुरुष सूत्र ही समझने चाहिए, वृक्ष सूत्र नहीं । __चार प्रकार के वृक्ष कहे गए हैं, यथा-कितनेक वृक्ष कहे आकृति से भी सरल और फलादि देने में भी सरल, कितनेक आकृति में सरल और फलादि देने में वक्र । इस प्रकार चार भंग । इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-आकृति से भी सरल और हृदय से भी सरल । इसी प्रकार उन्नत प्रणत के चार भंग और ऋजुवक्र के चार भंग भी कहने चाहिए । पराक्रम तक सब भंग जान लेने चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 48

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