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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र - २३६
___ मरण तीन प्रकार का कहा गया है, यथा-बालमरण, पण्डितमरण और बालपण्डितमरण । बालमरण तीन प्रकार का कहा गया है, स्थितलेश्य, संक्लिष्ट लेश्य, पर्यवजात लेश्य । पण्डितमरण तीन प्रकार का है, स्थितलेश्य, असंक्लिष्टलेश्य, अपर्यवजात लेश्य । बालपण्डितमरण तीन प्रकार का है, स्थितलेश्य, असंक्लिष्टलेश्य और अपर्यवजात लेश्य। सूत्र-२३७
निश्चय नहीं करने वाले शंकाशील के लिए तीन स्थान अहित कर, अशुभरूप, अयुक्त, अकल्याणकारी और अशुभानुबन्धी होते हैं, यथा-कोई मुण्डित होकर गृहस्थाश्रम से नीकलकर अनगार धर्म में दीक्षित होने पर निर्ग्रन्थ प्रवचन में शंका करता है, अन्यमत की ईच्छा करता है, क्रिया के फल के प्रति शंकाशील होता है, द्वैधीभाव ऐसा है या नहीं है ऐसी बुद्धि को प्राप्त करता है और कलुषित भाव वाला होता है और इस प्रकार वह निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा नहीं रखता है, विश्वास नहीं रखता है, रुचि नहीं रखता है तो उसे परीषह होते हैं और वे उसे पराजित कर देते हैं । परीषहों को पराजित नहीं कर सकता । कोई व्यक्ति मुण्डित होकर अगार अवस्था से अनगार रूप में दीक्षित होने पर पाँच महाव्रतों में शंका करे-यावत् कलुषित भाव वाला होता है और इस प्रकार वह कलुषित पंच महाव्रतों में श्रद्धा नहीं रखता-यावत् वह परीषहों को पराजित नहीं कर सकता है।
कोई व्यक्ति मुण्डित होकर और अगार से अनगार दीक्षा को अंगीकार करने पर षट् जीवनिकाय में श्रद्धा नहीं करता है, यावत्-वह परीषहों को पराजित नहीं कर सकता है।
सम्यक् निश्चय करने वाले के तीन स्थान हित कर यावत्-शुभानुबन्धी होते हैं, यथा-कोई व्यक्ति मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनगार धर्म में प्रव्रजित होने पर निर्ग्रन्थ प्रवचन में शंका नहीं लाता है अन्यमत की कांक्षा नहीं करता है यावत्-कलुषभाव को प्राप्त न होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा रखता है, विश्वास रखता है और रुचि रखता है तो वह परीषहों को पराजित कर देता है । परीषह उसे पराजित नहीं कर सकते हैं । कोई व्यक्ति मुण्डित होकर और गृहस्थावस्था से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर पाँच महाव्रतों में शंका नहीं करता है, कांक्षा नहीं करता है-यावत् वह परीषहों को पराजित करता है, परीषह उसे पराजित नहीं कर सकते हैं । कोई व्यक्ति मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से अनगार अवस्था में प्रव्रजित होकर षट् जीवनिकाय में शंका नहीं करता है-यावत् वह परीषहों को पराजित कर देता है उसे परीषह पराजित नहीं कर सकते हैं। सूत्र- २३८
रत्नप्रभादि प्रत्येक पृथ्वी तीन वलयों के द्वारा चारों तरफ से घिरी हुई है, यथा-घनोदधिवलय से, घनवातवलय से और तनुवात वलय से। सूत्र - २३९
नैरयिक जीवन उत्कृष्ट तीन समय वाली विग्रह-गति से उत्पन्न होते हैं । एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त ऐसा जानना चाहिए। सूत्र - २४०
क्षीण मोहवाले अर्हन्त तीन कर्मप्रकृतियों एक साथ क्षय करते हैं, यथा-ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय,अन्तराय सूत्र - २४१
अभिजित नक्षत्र के तीन तारे कहे गए हैं । इसी तरह श्रवण, अश्विनी, भरणी, मृगशिर, पुष्य और ज्येष्ठा के भी तीन तीन तारे हैं। सूत्र - २४२
श्री धर्मनाथ तीर्थंकर के पश्चात् त्रिचतुर्थांश, पल्योपम न्यून सागरोपम व्यतीत हो जाने के बाद श्री शान्तिनाथ भगवान उत्पन्न हुए।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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