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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३१३
संसार चार प्रकार का है। यथा-नैरयिक संसार, तिर्यंच संसार, मानव संसार और देव संसार । आयु चार प्रकार का है । यथा-नैरयिकायु, तिर्यंचायु, मनुजायु, देवायु ।
भव चार प्रकार का है। यथा-नैरयिक भव, तिर्यंच भव, मानव भव और देव भव । सूत्र-३१४
आहार चार प्रकार का है। यथा-अशन, पान, खादिम और स्वादिम । अथवा आहार चार प्रकार का है। यथाउपस्करसंपन्न-हींग वगैरह से संस्काररहित आहार । उपस्कृत संपन्न-अग्निपक्व आहार, स्वभाव संपन्न-स्वतः पक्व आहार-द्राक्ष आदि, पर्युषित संपन्न-रात भर रखकर बनाया हुआ आहार-दहींबड़ा आदि । सूत्र - ३१५
बंध चार प्रकार का है । यथा-प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध । कर्मप्रकृतियों का बंधप्रकृतिबंध है, कर्मप्रकृतियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति का बंध-स्थितिबंध है । कर्मप्रकृतियों में तीव्र-मंद रस का बंध - रसबंध है । आत्मप्रदेशों के साथ शुभाशुभ विपाक वाले अनंतानंत कर्मप्रदेशों का बंध-प्रदेश बंध ।
उपक्रम चार प्रकार का है । यथा-बंधनोपक्रम, उदीरणोपक्रम, उपशमनोपक्रम और विपरिणामनोपक्रम । बंधनोपक्रम चार प्रकार का है । यथा-प्रकृतिबंधनोपक्रम, स्थितिबंधनोपक्रम, अनुभागबंधनोपक्रम और प्रदेशबंधनोपक्रम । उदीरणोपक्रम चार प्रकार का है । यथा-प्रकृतिउदीरणोपक्रम, स्थितिउदीरणोपक्रम, अनुभावउदीरणोपक्रम और प्रदेशउदीरणोपक्रम । उपशमनोपक्रम चार प्रकार का है । यथा-प्रकृतिउपशमनोपक्रम, स्थितिउपशमनोपक्रम, अनुभावउपशमनोपक्रम और प्रदेशउपशमनोपक्रम । विपरिणामनोपक्रम चार प्रकार का है। यथा-प्रकृति विपरिणामनोपक्रम, स्थितिविपरिणामनोपक्रम, अनुभावविपरिणामनोपक्रम और प्रदेशविपरिणामनोपक्रम।
अल्प-बहुत्व चार प्रकार का है । यथा-प्रकृति अल्पबहुत्व, स्थिति अल्पबहुत्व, अनुभाव अल्पबहुत्व और प्रदेश अल्पबहुत्व।
संक्रम चार प्रकार का है-प्रकृतिसंक्रम, स्थितिसंक्रम, अनुभावसंक्रम, प्रदेशसंक्रम ।
निधत्त चार प्रकार का है। यथा-प्रकृति निधत्त, स्थिति निधत्त, अनुभाव निधत्त और प्रदेश निधत्त । निकाचित चार प्रकार का है । यथा-प्रकृति निकाचित, स्थिति निकाचित, अनुभाव निकाचित और प्रदेश निकाचित। सूत्र - ३१६
एक संख्या वाले चार हैं । यथा-द्रव्य एक, मातृकापद एक, पर्याय एक, संग्रह एक । सूत्र-३१७
कितने चार हैं? यथा-द्रव्य कितने हैं, मातृकापद कितने हैं, पर्याय कितने हैं और संग्रह कितने हैं ? सूत्र-३१८
सर्व चार हैं । नाम सर्व, स्थापना सर्व, आदेश सर्व और निश्वशेष सर्व । सूत्र-३१९
मानुषोत्तर पर्वत की चार दिशाओं में चार कूट हैं । यथा-रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न और रत्नसंचय । सूत्र-३२०
जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी का सुषमसुषमा काल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था । जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोडाकोड़ी सागरोपम होगा। सूत्र- ३२१
जम्बूद्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर चार अकर्मभूमियाँ हैं । यथा-हेमवंत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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