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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक ___ पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष साधु वेष छोड़ता है किन्तु चारित्र धर्म नहीं छोड़ता । एक पुरुष चारित्र धर्म छोड़ता है किन्तु साधु वेष नहीं छोड़ता । एक पुरुष साधु वेष भी छोड़ता है और चारित्र धर्म भी छोड़ता है। एक पुरुष साधु वेष भी नहीं छोड़ता और चारित्र धर्म भी नहीं छोड़ता।
पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (श्रमण) सर्वज्ञ धर्म को छोड़ता है किन्तु गण की मर्यादा को नहीं छोड़ता है। एक पुरुष सर्वज्ञ कथित धर्म को नहीं छोड़ता है किन्तु गण की मर्यादा को छोड़ देता है । एक पुरुष सर्वज्ञ कथित धर्म भी छोड़ देता है और गण की मर्यादा भी छोड़ देता है । एक पुरुष सर्वज्ञ कथित धर्म भी नहीं छोड़ता है और गण की मर्यादा भी नहीं छोड़ता है।
पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष है उसे धर्म प्रिय है किन्तु वह धर्म में दृढ़ नहीं है । एक पुरुष है वह धर्म में दृढ़ है किन्तु उसे धर्म प्रिय नहीं है । एक पुरुष है उसे धर्म प्रिय भी है और वह धर्म में दृढ़ भी है । एक पुरुष है उसे धर्म भी प्रिय नहीं है और वह धर्म में दृढ़ भी नहीं है।
आचार्य चार प्रकार के हैं । यथा-एक आचार्य दीक्षा देते हैं किन्तु महाव्रतों की प्रतिज्ञा नहीं कराते हैं । एक आचार्य महाव्रतों की प्रतिज्ञा कराते हैं किन्तु दीक्षा नहीं देते । एक आचार्य दीक्षा भी देते हैं और महाव्रत भी धारण कराते हैं । एक आचार्य न दीक्षा देते हैं और न महाव्रत धारण कराते हैं।
आचार्य चार प्रकार के हैं । यथा-एक आचार्य शिष्य को आगम ज्ञान प्राप्त करने योग्य बना देते हैं । किन्तु स्वयं आगमों का अध्ययन नहीं कराते । एक आचार्य आगमों का अध्ययन कराते हैं किन्तु शिष्य को आगम ज्ञान प्राप्त करने योग्य नहीं बनाते । एक आचार्य शिष्य को योग्य भी बनाते हैं और वाचना भी देते हैं । एक आचार्य न शिष्य को योग्य बनाते हैं और न वाचना देते हैं।
अन्तेवासी (शिष्य) चार प्रकार के हैं । एक प्रव्रजित शिष्य है किन्तु उपस्थापित शिष्य नहीं है । एक उपस्थापित शिष्य है किन्तु प्रव्रजित शिष्य नहीं है । एक शिष्य प्रव्रजित भी है और उपस्थापित भी है । एक शिष्य प्रव्रजित और उपस्थापित भी नहीं है।
शिष्य चार प्रकार के हैं । एक उद्देशना शिष्य है किन्तु वाचना शिष्य नहीं है । एक वाचना शिष्य है किन्तु उद्देशना शिष्य नहीं है । एक उद्देशना शिष्य भी है और वाचना शिष्य भी है । एक उद्देशना शिष्य भी नहीं है और वाचना शिष्य भी नहीं है।
निर्ग्रन्थ चार प्रकार के हैं । यथा-एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में ज्येष्ठ है किन्तु महापाप कर्म और महापाप क्रिया करता है। न कभी आतापना लेता है और न पंचसमितियों का पालन ही करता है। अतः वह धर्म का आराधक नहीं है। एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में ज्येष्ठ है किन्तु पापकर्म और पाप क्रिया कदापि नहीं करता है । आतापना लेता है और समितियों का पालन भी करता है । अतः वह धर्म का आराधक होता है । एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में लघु है किन्तु महापाप कर्म और महापाप क्रिया करता है, न कभी आतापना लेता है और न समितियों का पालन करता है । अतः वह धर्म का आराधक नहीं होता है । एक निर्ग्रन्थ दीक्षा में लघु है किन्तु कदापि पाप कर्म और पाप क्रिया नहीं करता है, आतापना लेता है और समितियों का पालन भी करता है। अतः वह धर्म का आराधक होता है । इसी प्रकार निर्ग्रन्थियों, श्रावकों
और श्राविकाओं के भांगे कहें। सूत्र-३४३
श्रमणोपासक चार प्रकार के हैं । यथा-१. माता-पिता के समान, २. भाई के समान, ३. मित्र के समान और ४. शौक के समान । श्रमणोपासक चार प्रकार के हैं । यथा-१. आदर्श समान । २. पताका समान । ३. स्थाणु समान । ४. तीक्ष्ण काँटे के समान । सूत्र-३४४
भगवान महावीर के जो श्रमणोपासक सौधर्मकल्प के अरुणाभ विमान में उत्पन्न हुए हैं उनकी चार पल्यो की स्थिति है।
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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