Book Title: Agam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 76
________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक करता है किन्तु व्रण नहीं करता है । एक पुरुष व्रण भी करता है और व्रण की रक्षा भी करता है । एक पुरुष व्रण भी नहीं करता और व्रण की रक्षा भी नहीं करता । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष व्रण करता है किन्तु व्रण को औषधि आदि से मिलाता नहीं है । एक पुरुष व्रण को औषधि से ठीक करता है किन्तु व्रण नहीं करता है। एक पुरुष व्रण भी करता है और व्रण की रक्षा भी करता है। एक पुरुष व्रण भी नहीं करता है, व्रण को ठीक भी नहीं करता है। __व्रण चार प्रकार के हैं । यथा-एक व्रण के अन्दर शल्य है किन्तु बाहर शल्य नहीं है । एक व्रण के बाहर शल्य है किन्तु अन्दर शल्य नहीं है । एक व्रण के अन्दर भी शल्य है और बाहर भी शल्य है । एक व्रण के अन्दर भी शल्य नहीं है और बाहर भी शल्य नहीं है । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार का है । एक पुरुष मन में शल्य रखता है किन्तु व्यवहार में शल्य नहीं रखता है । एक पुरुष व्यवहार में शल्य रखता है किन्तु मन में शल्य नहीं रखता है । एक पुरुष मन में भी शल्य रखता है और व्यवहार में भी शल्य रखता है। एक पुरुष मन में भी शल्य नहीं रखता है और व्यवहार में भी शल्य नहीं रखता है। व्रण चार प्रकार के हैं । यथा-एक व्रण अन्दर से सड़ा हुआ है किन्तु बाहर से सड़ा हुआ नहीं है । एक व्रण बाहर से सड़ा हुआ है किन्तु अन्दर से सड़ा हुआ नहीं है । एक व्रण अन्दर से भी सड़ा हुआ है और बाहर से भी सड़ा हुआ है । एक व्रण अन्दर से भी सड़ा हुआ नहीं है और बाहर से भी सड़ा हुआ नहीं है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष का हृदय श्रेष्ठ है किन्तु उसका व्यवहार श्रेष्ठ नहीं है । एक पुरुष का व्यवहार श्रेष्ठ है किन्तु दुष्ट हृदय है । एक पुरुष दुष्ट हृदय भी है और उसका व्यवहार भी श्रेष्ठ नहीं है । एक पुरुष दुष्ट हृदय भी नहीं है और व्यवहार भी उसका श्रेष्ठ है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष सद्विचार वाला है और सत्कार्य करने वाला भी है । एक पुरुष सद् विचार वाला है किन्तु सत्कार्य करने वाला नहीं है । एक पुरुष सत्कार्य करने वाला तो है किन्तु सद्विचार वाला नहीं है एक पुरुष सद्विचार वाला भी नहीं है और सत्कार्य करने वाला भी नहीं है । पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष भाव से श्रेयस्कर है और द्रव्य से श्रेयस्कर सदृश है । एक पुरुष भाव से श्रेयस्कर है किन्तु द्रव्य से पापी सदृश है । एक पुरुष भाव से पापी है किन्तु द्रव्य से श्रेयस्कर सदृश है । एक पुरुष भाव से भी पापी है और द्रव्य से भी पापी सदृश है पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष श्रेष्ठ है और अपने को श्रेष्ठ मानता है। एक पुरुष श्रेष्ठ है किन्तु अपने को पापी मानता है । एक पुरुष पापी है किन्तु अपने को श्रेष्ठ मानता है । एक पुरुष पापी है और अपने को पापी मानता है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष श्रेष्ठ है और लोगों में श्रेष्ठ सदृश माना जाता है । एक पुरुष श्रेष्ठ है किन्तु लोगों में पापी सदृश माना जाता है । एक पुरुष पापी है किन्तु लोगों में श्रेष्ठ सदृश माना जाता है । एक पुरुष पापी है और लोगों में पापी सदृश माना जाता है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष जिन प्रवचनों का प्ररूपक है किन्तु प्रभावक नहीं है । एक पुरुष शासन का प्रभावक है किन्तु जिन प्रवचनों का प्ररूपक नहीं है । एक पुरुष शासन का प्रभावक भी है और जिन वचनों का प्ररूपक भी है । एक पुरुष शासन का प्रभावक भी नहीं है और जिन प्रवचनों का प्ररूपक भी नहीं है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष सूत्रार्थ का प्ररूपक है किन्तु शुद्ध आहारादि की एषणा में तत्पर नहीं है। एक पुरुष शुद्ध आहारादि की एषणा में तत्पर नहीं है किन्तु सूत्रार्थ का प्ररूपक है । एक पुरुष सूत्रार्थ का प्ररूपक भी है और शुद्ध आहारादि की एषणा में भी तत्पर है । एक पुरुष सूत्रार्थ का प्ररूपक भी नहीं है और शुद्ध आहारादि की एषणा में भी तत्पर नहीं है। वृक्ष की विकुर्वणा चार प्रकार की है । यथा-नई कोंपले आना, पत्ते आना, पुष्प आना, फल आना। सूत्र - ३६७ वाद करने वालों के समोसरण चार हैं । यथा-क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादी। विकलेन्द्रियों को छोड़कर शेष सभी दण्डकों में वादियों के चार समवसरण हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 76

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