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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक एक पुरुष अपूर्ण है (धनादि से परिपूर्ण नहीं है) किन्तु समय-समय पर धन का उपयोग करता है अतः पूर्ण (धनी) जैसा ही प्रतीत होता है । एक पुरुष अपूर्ण है (धनादि से परिपूर्ण भी नहीं है) और अपूर्ण (निर्धन) जैसा ही प्रतीत होता है।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण है (जल आदि से पूर्ण है) और पूर्ण रूप है (सुन्दर है) । एक कुम्भ पूर्ण है किन्तु अपूर्ण रूप है (सुन्दर) शेष भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथाएक पुरुष पूर्ण है (ज्ञानादि से पूर्ण है) और पूर्ण रूप है (संयत वेशभूषा से युक्त है) । एक पुरुष पूर्ण है किन्तु पूर्ण रूप नहीं है (संयत वेशभूषा से युक्त नहीं है) शेष भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ पूर्ण (जलादि से) है और (स्वर्णादि मूल्यवान धातु का बना हआ होने से) प्रिय है । एक कुम्भ पूर्ण है किन्तु (मृत्तिका आदि तुच्छ द्रव्यों का बना हुआ होने से) अप्रिय है । एक कुम्भ अपूर्ण है किन्तु (स्वर्णादि मूल्यवान धातुओं का बना हुआ होने से) प्रिय है । एक कुम्भ अपूर्ण है और अप्रिय भी है। इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष धन या श्रुत आदि से पूर्ण है और उदार हृदय है अतः प्रिय है । एक पुरुष पूर्ण है किन्तु मलिन हृदय होने से अप्रिय है। शेष भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहें।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-एक कुम्भ (जल से) पूर्ण है किन्तु उसमें पानी झरता है । एक कुम्भ (जल से) पूर्ण है किन्तु उसमें से पानी झरता नहीं है । एक कुम्भ (जल से) अपूर्ण है किन्तु झरता है । एक कुम्भ अपूर्ण है किन्तु झरता नहीं है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं यथा-एक पुरुष (धन या श्रुत से) पूर्ण है और धन या श्रुत देता भी है एक पुरुष पूर्ण है किन्तु देता नहीं है । एक पुरुष (धन या श्रुत से) अपरिपूर्ण है किन्तु यथाशक्ति या यथाज्ञान देता भी है एक पुरुष अपूर्ण है और देता भी नहीं है।
कुम्भ चार प्रकार के हैं । यथा-खंडित, जोजरा, कच्चा और पक्का । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष मूल प्रायश्चित्त योग्य होता है । एक पुरुष छेदादि प्रायश्चित्त योग्य होता है । एक पुरुष सूक्ष्म अतिचार युक्त होता है । एक पुरुष निरतिचार चारित्र युक्त होता है।
____ कुम्भ चार प्रकार के हैं, एक मधु कुम्भ है और उसका ढक्कन भी मधु पूरित है । एक मधु कुम्भ है किन्तु उसका ढक्कन विष पूरित है । एक विष कुम्भ है किन्तु उसका ढक्कन मधु पूरित है । एक विष कुम्भ है और उसका ढक्कन भी विष पूरित है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष सरल हृदय है और मधुर भाषी है। एक पुरुष सरल हृदय है किन्तु कटुभाषी है । एक पुरुष मायावी है किन्तु मधुरभाषी भी नहीं है । एक पुरुष मायावी है किन्तु मधुरभाषी भी है। सूत्र-३८८
जिस पुरुष का हृदय निष्पाप एवं निर्मल है और जिसकी जिह्वा भी सदा मधुर भाषिणी है उस पुरुष को मधु ढक्कन वाले मधु कुम्भ की उपमा दी जाती है। सूत्र - ३८९
जिस पुरुष का हृदय निष्पाप एवं निर्मल है किन्तु उसकी जिह्वा सदा कटुभाषिणी है तो उस पुरुष को विष पूरित ढक्कन वाले मधु कुम्भ की उपमा दी जाती है। सूत्र - ३९०
जो पापी एवं मलिन हृदय है और जिसकी जिह्वा सदा मधुर भाषिणी है उस पुरुष को मधुपूरित ढक्कन वाले विष कुम्भ की उपमा दी जाती है। सूत्र - ३९१
जो पापी एवं मलिन हृदय है और जिसकी जिह्वा सदा कटुभाषिणी है उस पुरुष को विषपूरित ढक्कन वाले विष कुम्भ की उपमा दी जाती है। सूत्र-३९२
उपसर्ग चार प्रकार के हैं । देवकृत, मनुष्यकृत, तिर्यंचकृत, आत्मकृत ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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