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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक नापने का गणित । राशि मापने का गणित ।
अधोलोक में अंधकार करने वाली चार वस्तुएं हैं । यथा-नरकावास, नैरयिक, पाप कर्म और अशुभ पुद्गल तिर्यक्लोक में उद्योत करने वाले चार हैं । चन्द्र, सूर्य, मणि और ज्योति । ऊर्ध्वलोक में उद्योत करने वाले चार हैं । यथा-देव, देवियाँ, विमान और आभरण।
स्थान-४ - उद्देशक-४ सूत्र-३६२
विदेश जाने वाले पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष जीवन निर्वाह के लिए विदेश जाता है । एक पुरुष संचित सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए विदेश जाता है । एक पुरुष सुख-सुविधा के लिए विदेश जाता है। एक पुरुष प्राप्त सुख-सुविधा की सुरक्षा के लिए विदेश जाता है। सूत्र-३६३
नैरयिकों का आहार चार प्रकार का है। यथा-अंगारों जैसा अल्पदाहक । प्रज्वलित अग्नि कणों जैसा अति दाहक । शीतकालीन वायु के समान शीतल । बर्फ के समान अतिशीतल । तिर्यंचों का आहार चार प्रकार का है। यथा-कंक पक्षी के आहार जैसा अर्थात् दुष्पच आहार भी तिर्यंचों को सुपच होता है। बिल में जो भी डालें सब तुरन्त अन्दर चला जाता है उसी प्रकार तिर्यंच स्वाद लिए बिना सीधा उदरस्थ कर लेते हैं । चाण्डाल के माँस समान अभक्ष्य भी तिर्यंच खा लेते हैं । पुत्र माँस के समान तीव्र क्षुधा के कारण अनिच्छापूर्वक खाते हैं । मनुष्यों का आहार चार प्रकार का है। यथा-अशन-पान-खादिम-स्वादिम । देवताओं का आहार चार प्रकार का है । सुवर्ण, सुगन्धित, स्वादिष्ट और सुखद स्पर्श वाला। सूत्र-३६४
आशि-विष चार प्रकार का है। यथा-वृश्चिक जाति का आशिविष, मंडूक जाति का आशिविष, सर्प जाति का आशिविष, मनुष्य जाति का आशिविष।
हे भगवन् ! बिच्छु जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली है ? आधे भरत क्षेत्र जितने बड़े शरीर को एक बिच्छु का विष प्रभावित कर देता है । यह केवल विष का प्रभावमात्र बताया है। अब तक न इतने बड़े शरीर को प्रभावित किया है, न वर्तमान में भी प्रभावित करता है और न भविष्य में भी प्रभावित कर सकेगा । हे भगवन् ! मंडूक जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली है ? भरत क्षेत्र जितने बड़े शरीर को एक मंडूक का विष प्रभावित कर देता है शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! सर्प जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली है ? जम्बूद्वीप जितने बड़े शरीर को एक सर्प का विष प्रभावित कर देता है। शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! मनुष्य जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली है ? समय क्षेत्र जितने बड़े शरीर को एक मनुष्य का विष प्रभावित कर देता है। शेष पूर्ववत् । सूत्र-३६५
व्याधियाँ चार प्रकार की हैं । यथा-वातजन्य, पित्तजन्य, कफजन्य और सन्निपातजन्य । चिकित्सा चार प्रकार की है। वैद्य, औषध, रोगी और परिचारक । सूत्र - ३६६
चिकित्सक चार प्रकार के हैं । एक चिकित्सक स्वयं की चिकित्सा करता है किन्तु दूसरे की चिकित्सा नहीं करता है। एक चिकित्सक दूसरे की चिकित्सा करता है किन्तु स्वयं की चिकित्सा नहीं करता है। एक चिकित्सक स्वयं की भी चिकित्सा करता है और अन्य की भी चिकित्सा करता है । एक चिकित्सक न स्वयं की चिकित्सा करता है और न अन्य की चिकित्सा करता है। पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष व्रण (शल्य चिकित्सा) करता है किन्तु व्रण को स्पर्श नहीं करता । एक पुरुष व्रण को स्पर्श करता है किन्तु व्रण नहीं करता । एक पुरुष व्रण भी करता है और व्रण का स्पर्श भी करता है । एक पुरुष व्रण भी नहीं करता और व्रण का स्पर्श भी नहीं करता।
पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष व्रण करता है किन्तु व्रण की रक्षा नहीं करता । एक पुरुष व्रण की रक्षा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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