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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक अधिपति है किन्तु सब देशों का नहीं । एक राजा सब देशों का स्वामी है किन्तु एक देश का नहीं । एक राजा एक देश का अधिपति भी है और सब देशों का अधिपति भी है । एक राजा न एक देश का अधिपति है और न सब देशों का अधिपति है। सूत्र - ३६९
मेघ चार प्रकार के हैं । पुष्कलावर्त, प्रद्युम्न, जीमूत और जिम्ह । पुष्कलावर्त महामेघ की एक वर्षा से पृथ्वी दस हजार वर्ष तक गीली रहती है । प्रद्युम्न महामेघ की एक वर्षा से पृथ्वी एक हजार वर्ष तक गीली रहती है । जीमूत महामेघ की एक वर्षा से पृथ्वी दस वर्ष तक गीली रहती है। जिम्ह महामेघ की अनेक वर्षाएं भी पृथ्वी को एक वर्ष तक गीली नहीं रख पाती। सूत्र - ३७०
करंडक चार प्रकार के हैं । श्वपाक का करंडक, वेश्याओं का करंडक, समृद्ध गृहस्थ का करंडक, राजा का करंडक । इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के हैं । श्वपाक करंडक समान आचार्य केवल लोकरंजक ग्रन्थों का ज्ञाता होता है किन्तु श्रमणाचार का पालक नहीं होता । वेश्याकरंड समान आचार्य जिनागमों का सामान्य ज्ञाता होता है किन्तु लोकरंजक ग्रन्थों का व्याख्यान करते अधिक से अधिक जनता को अपनी ओर आकर्षित करता है । गाथापति के करंडक समान आचार्य स्वसिद्धान्त और पर-सिद्धान्त का ज्ञाता होता है और श्रमणाचार का पालक भी होता है। राजा के करंडिये समान आचार्य जिनागमों के मर्मज्ञ एवं आचार्य के समस्तगुण युक्त होते हैं। सूत्र - ३७१
वृक्ष चार प्रकार के हैं । यथा-एक वृक्ष शाल (महान्) है और शाल के (छायादि) गुण युक्त हैं । एक वृक्ष शाल (महान्) है किन्तु गुणों में एरण्ड समान है । एक वृक्ष एरण्ड समान (अत्यल्प विस्तार वाला) है किन्तु गुणों में शाल (महावृक्ष) के समान है । एक वृक्ष एरण्ड है और गुणों से भी एरण्ड जैसा ही है । इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के हैं। एक आचार्य शाल समान महान् (उत्तम जाति कुल) हैं और ज्ञानक्रियादि महान् गुणयुक्त हैं । एक आचार्य महान् है किन्तु ज्ञान-क्रियादि गुणहीन है । एक आचार्य एरण्ड समान (जाति-कुल-गुरु आदि से सामान्य) है किन्तु ज्ञानक्रियादि महान् गुणयुक्त है । एक आचार्य एरण्ड समान है और ज्ञान-क्रियादि गुणहीन है।
वृक्ष चार प्रकार के हैं । यथा-एक वृक्ष शाल (महान्) है और शालवृक्ष समान महान् वृक्षों से परिवृत्त है । एक वृक्ष शाल समान महान् है किन्तु एरण्ड समान तुच्छ वृक्षों से परिवृत्त है । एक वृक्ष एरण्ड समान तुच्छ है किन्तु शाल समान महान् वृक्षों से परिवृत्त है । एक वृक्ष एरण्ड समान तुच्छ है और एरण्ड समान वृक्षों से परिवृत्त है । इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार हैं । एक आचार्य शाल वृक्ष समान महान् गुणयुक्त है और शाल परिवार समान श्रेष्ठ शिष्य परिवारयुक्त है । एक आचार्य शालवृक्ष समान उत्तम गुणयुक्त है किन्तु एरण्ड परिवार समान कनिष्ठ शिष्य परिवारयुक्त है। एक आचार्य एरण्ड परिवार समान कनिष्ठ शिष्य परिवारयुक्त है किन्तु स्वयं शाल वृक्ष समान महान् उत्तम गुणयुक्त है। एक आचार्य एरण्ड समान कनिष्ठ और एरण्ड समान परिवार समान कनिष्ठ शिष्यपरिवार युक्त है। सूत्र - ३७२
महावृक्षों के मध्य में जिस प्रकार वृक्षराज शाल सुशोभित होता है उसी प्रकार श्रेष्ठ शिष्यों के मध्य में उत्तम आचार्य सुशोभित होते हैं। सूत्र-३७३
एरण्ड वृक्षों के मध्य में जिस प्रकार वृक्षराज शाल दिखाई देता है उसी प्रकार कनिष्ठ शिष्यों के मध्य में उत्तम आचार्य मालुम पड़ते हैं। सूत्र - ३७४
महावृक्षों के मध्य में जिस प्रकार एरण्ड दिखाई देता है उसी प्रकार श्रेष्ठ शिष्यों के मध्य में कनिष्ठ आचार्य दिखाई देता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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