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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३७५
एरण्ड वृक्षों के मध्य में जिस प्रकार एक एरण्ड प्रतीत होता है उसी प्रकार कनिष्ठ शिष्यों के मध्य में कनिष्ठ आचार्य प्रतीत होते हैं। सूत्र - ३७६
मत्स्य चार प्रकार के हैं । यथा-एक मत्स्य नदी के प्रवाह के अनुसार चलता है । एक मत्स्य नदी के प्रवाह के सन्मुख चलता है । एक मत्स्य नदी के प्रवाह के किनारे चलता है । एक मत्स्य नदी के प्रवाह के मध्य में चलता है । इसी प्रकार भिक्षु (श्रमण) चार प्रकार के हैं । यथा-एक भिक्षु उपाश्रय के समीप गृह से भिक्षा लेना प्रारम्भ करता है। एक भिक्षु किसी अन्य गृह से भिक्षा लेता हुआ उपाश्रय तक पहुँचता है । एक भिक्षु घरों की अन्तिम पंक्तियों से भिक्षा लेता हुआ उपाश्रय तक पहुंचता है । एक भिक्षु गाँव के मध्य भाग से भिक्षा लेता है।
गोले चार प्रकार के होते हैं । यथा-मीण का गोला, लाख का गोला, काष्ठ का गोला, मिट्टी का गोला । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । एक पुरुष मीण के गोले के समान कोमल हृदय होता है । एक पुरुष लाख के गोले के समान कुछ कठोर हृदय होता है। एक पुरुष काष्ठ के गोले के समान कुछ अधिक कठोर हृदय होता है । एक पुरुष मिट्टी के गोले के समान कुछ और अधिक कठोर हृदय होता है।
गोले चार प्रकार के होते हैं । यथा-लोहे का गोला, जस्ते का गोला, तांबे का गोला और शीशे का गोला । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-लोहे के गोले के समान एक पुरुष के कर्म भारी होते हैं । जस्ते के गोले के समान एक पुरुष के कर्म कुछ अधिक भारी होते हैं । तांबे के गोले के समान एक पुरुष के कर्म और अधिक भारी होते हैं। शीशे के गोले के समान एक पुरुष के कर्म अत्याधिक भारी होते हैं।
गोले चार प्रकार के होते हैं । यथा-चाँदी का गोला, सोने का गोला, रत्नों का गोला और हीरों का गोला । उसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-चाँदी के गोले के समान एक पुरुष ज्ञानादि श्रेष्ठ गुणयुक्त होता है। सोने के गोले के समान एक पुरुष कुछ अधिक श्रेष्ठ ज्ञानादि गुणयुक्त होता है । रत्नों के गोले के समान एक पुरुष और अधिक श्रेष्ठ ज्ञानादि गुणयुक्त होता है। हीरों के गोले के समान एक पुरुष अत्याधिक श्रेष्ठ गुणयुक्त होता है।
पत्ते चार प्रकार के होते हैं । तलवार की धार के समान तीक्ष्ण धार वाले पत्ते । करवत की धार के समान तीक्ष्ण दाँत वाले पत्ते । उस्तरे की धार के समान तीक्ष्ण धार वाले पत्ते । कदंबचीरिका की धार के समान तीक्ष्ण धार वाले पत्ते । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष तलवार की धार के समान तीक्ष्ण वैराग्यमय विचार धारा से मोहपाश का शीघ्र छेदन करता है । एक पुरुष करवत की धार के समान वैराग्यमय विचारों से मोहपाश को शनैः शनैः काटता है । एक पुरुष उस्तरे की धार के समान वैराग्यमय विचारधारा से मोहपाश का विलम्ब से छेदन करता है । एक पुरुष कदंबचीरिका की धार के समान वैराग्यमय विचारों से मोहपाश का अतिविलम्ब से विच्छेद करता है।
कट चार प्रकार के हैं । घास की चटाई, बाँस की सलियों की चटाई, चर्म की चटाई और कंबल की चटाई । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-घास की चटाई के समान एक पुरुष अल्प राग वाला होता है । बाँस की चटाई के समान एक पुरुष विशेष रागभाव वाला होता है । चमड़े की चटाई के समान एक पुरुष विशेषतर रागभाव वाला होता है। कंबल की चटाई के समान एक पुरुष विशेषतम रागभाव वाला होता है। सूत्र - ३७७
चतुष्पद चार प्रकार के हैं । एक खुरवाले, दो खुरवाले, कठोर चर्ममय गोल पैरवाले, तीक्ष्ण नखयुक्त पैरवाले।
पक्षी चार प्रकार के होते हैं । चमड़े की पांखों वाले, रुएं वाली पांखों वाले, सिमटी हुई पांखों वाले, फैली हुई पांखों वाले।
क्षुद्र प्राणी चार प्रकार के होते हैं । यथा-दो इन्द्रियों वाले, तीन इन्द्रियों वाले, चार इन्द्रियों वाले और सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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