________________
आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक हय (अश्व) चार प्रकार के हैं । एक अश्व पलाण युक्त है और वेग युक्त है । यान के चार सूत्रों के समान हय के चार सूत्र कहे और पुरुष सूत्र भी पूर्ववत कहे । हय के चार सूत्रों के समान गज के चार सूत्र कहें और पुरुष सूत्र भी पूर्ववत कहे।
युग्यचर्या (अश्व आदि की चर्या) चार प्रकार की है । यथा-एक अश्व मार्ग में चलता है किन्तु उन्मार्ग में नहीं चलता है । एक अश्व उन्मार्ग में चलता है किन्तु मार्ग में नहीं चलता है । एक अश्व मार्ग में भी चलता है और उन्मार्ग में भी चलता है । एक अश्व मार्ग में भी नहीं चलता और उन्मार्ग में भी नहीं चलता । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के हैं यथा-एक पुरुषसंयम मार्ग में चलता है किन्तु उन्मार्ग में नहीं चलता। शेष तीन भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहे।
पुष्प चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुष्प सुन्दर है किन्तु सुगन्धित नहीं है । एक पुष्प सुगन्धित है किन्तु सुन्दर नहीं है । एक पुष्प सुन्दर भी है और सुगन्धित भी है । एक पुष्प सुन्दर भी नहीं है और सुगन्धित भी नहीं है । इसी प्रकार पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष सुन्दर है किन्तु सदाचारी नहीं है। शेष तीन भांगे पूर्ववत् कहे।
जाति सम्पन्न और कुल सम्पन्न, जाति सम्पन्न और बल सम्पन्न । जाति सम्पन्न और रूप सम्पन्न, जाति सम्पन्न और श्रुत सम्पन्न । जाति सम्पन्न और शील सम्पन्न, जाति सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न । कुल सम्पन्न और बल सम्पन्न, कुल सम्पन्न और रूप सम्पन्न । कुल सम्पन्न और श्रुत सम्पन्न, कुल सम्पन्न और शील सम्पन्न । कुल सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न, बल सम्पन्न और रूप सम्पन्न । बल सम्पन्न और श्रुत सम्पन्न । बल सम्पन्न और शील सम्पन्न । बल सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न । रूप सम्पन्न और शील सम्पन्न, रूप सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न । श्रुत सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न, श्रुत सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न । शील सम्पन्न और चारित्र सम्पन्न । इनके चार-चार भांगे पूर्वोक्त क्रम से कहे।
___फल चार प्रकार के हैं । यथा-आंबले जैसा मधुर, दाख जैसा मधुर, दूध जैसा मधुर, खांड जैसा मधुर । इसी प्रकार आचार्य चार प्रकार के हैं । यथा-मधुर आंवले के समान जो आचार्य है वे मधुर-भाषी हैं और उपशान्त है । मधुर दाख समान जो आचार्य है वे अधिक मधुरभाषी है और अधिक उपशान्त है। मधुर दूध के समान जो आचार्य है वे विशेष मधुरभाषी है और अत्यधिक उपशान्त है । मधुर शर्करा समान जो आचार्य है वे अधिकतम मधुरभाषी है और अधिक उपशान्त है।
___पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष अपनी सेवा करता है किन्तु दूसरे की नहीं करता । एक पुरुष दूसरे की सेवा करता है अपनी नहीं करता । एक पुरुष अपनी सेवा भी करता है और दूसरे की भी करता है । एक पुरुष अपनी सेवा भी नहीं करता और दूसरे की भी नहीं करता।
पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष दूसरे की सेवा करता है किन्तु अपनी सेवा नहीं करवाता । एक पुरुष दूसरे से सेवा करवाता है किन्तु स्वयं सेवा नहीं करता । एक पुरुष दूसरे की सेवा भी करता है और दूसरे से सेवा करवाता है । एक पुरुष न दूसरे की सेवा करता है और न दूसरे से सेवा करवाता है।
पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष कार्य करता है किन्तु मान नहीं करता । एक पुरुष मान करता है किन्तु कार्य नहीं करता । एक कार्य भी करता है और मान भी करता है । एक कार्य भी नहीं करता है और मान भी नहीं करता है।
पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (श्रमण) गण के लिए आहारादि का संग्रह करता है किन्तु मान नहीं करता, एक पुरुष गण के लिए संग्रह नहीं करता किन्तु मान करता है । एक पुरुष गण के लिए भी संग्रह करता है और मान भी करता है। एक पुरुष गण के लिए संग्रह भी नहीं करता और अभिमान भी नहीं करता है।
पुरुष चार प्रकार के होते हैं । यथा-एक पुरुष निर्दोष साधु समाचारी का पालन करके गण की शोभा बढ़ाता है और मान नहीं करता । एक पुरुष मान करता है किन्तु गण की शोभा नहीं बढ़ाता है । एक पुरुष गण की शोभा भी बढ़ाता है और मान भी करता है । एक पुरुष गण की शोभा भी नहीं बढ़ाता और मान भी नहीं करता।
पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष (श्रमण) गण की शुद्धि (यथायोग्य प्रायश्चित्त देकर) करता है किन्तु मान नहीं करता। शेष तीन भांगे पूर्वोक्त कहे।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 68