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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक कनका, कनकलता, चित्रगुप्त और वसुंधरा । इसी तरह-यम, वरुण और वैश्रमण के भी इसी नाम की चार-चार अग्रमहिषियाँ हैं । वेरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि के सोम लोकपाल की चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-मित्रता, सुभद्रा, विद्युता और अशनी । इसी तरह यम, वैश्रमण और वरुण की भी अग्रमहिषियाँ इन्हीं नाम वाली हैं । नागकुमारेन्द्र, नागकुमार-राज धरण के कालवाल, लोकपाल की चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-अशोका, विमला, सुप्रभा और सुदर्शना इसी प्रकार यावत्-शंखवाल की अग्रमहिषियाँ हैं।
नागकुमारेन्द्र, नागकुमार-राज भूतानन्द के कालवाल लोकपाल की चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-सुनन्दा, सुभद्रा, सुजाता और सुमना । इसी प्रकार यावत्-शैलपाल की अग्रमहिषियाँ समझनी चाहिए। जिस प्रकार धरणेन्द्र के लोकपालों का कथन किया उसी प्रकार सब दाक्षिणात्य-यावत्-घोष नामक इन्द्र के लोकपालों की अग्रमहिषियाँ जाननी चाहिए । जिस प्रकार भूतानन्द का कथन किया उसी प्रकार उत्तर के सब इन्द्र यावत्-महाघोष इन्द्र के लोकपालों की अग्रमहिषियाँ समझनी चाहिए।
पिशाचेन्द्र पिशाचराज काल की चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-कमला, कमलप्रभा, उत्पला और सुदर्शना । इसी तरह महाकाल की भी । भूतेन्द्र भूतराज सुरूप के भी चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-रूपवती, बहुरूपा, सुरूपा और सुभगा । इसी तरह प्रतिरूप के भी । यक्षेन्द्र यक्षराज पूर्णभद्र के चार अग्रमहिषियाँ हैं, यथा-पुत्रा, बहुपुत्रा, उत्तमा और तारका । इस प्रकार यक्षेन्द्र मणिभद्र की चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं । राक्षसेन्द्र, राक्षसराज भीम की अग्रमहिषियाँ चार हैं, उनके नाम ये हैं-पद्मा, वसुमती, कनका और रत्नप्रभा । इसी प्रकार राक्षसेन्द्र महाभीम की चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं।
किन्नरेन्द्र किन्नर की अग्रमहिषियाँ चार हैं, उनके नाम ये हैं-१. वडिंसा, २. केतुमती, ३. रतिसेना, और ४. रतिप्रभा । किन्नरेन्द्र किंपुरुष की चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं । किंपुरुषेन्द्र सत्पुरुष की अग्रमहिषियाँ चार हैं-रोहिणी, नवमिता, ह्री और पुष्पवती । पुरुषेन्द्र महापुरुष की चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं । महोरगेन्द्र अतिकाय की अग्रमहिषियाँ चार हैं-१. भुजगा, २. भुजगवती, ३. महाकच्छा और ४. स्फुटा । महोरगेन्द्र महाकाय की चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं । गंधर्वेन्द्र गीतरति की अग्रमहिषियाँ चार हैं । सुघोषा, विमला, सुसरा और सरस्वती । गंधर्वेन्द्र गीतयश की चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं । ज्योतिष्केन्द्र, ज्योतिष्कराज चन्द्र की अग्रमहिषियाँ चार हैं । चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अत्रिमाली और प्रभंकरा । इसी प्रकार सूर्य की चार अग्र-महिषियों में प्रथम अग्रमहिषी का नाम सूर्यप्रभा और शेष तीन के नाम चन्द्र के समान है । इंगाल महाग्रह की अग्र-महिषियाँ चार हैं । विजया, वैजयंती, जयंती और अपराजिता । सभी महाग्रहों की यावत्-भावकेतु की चार-चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं।
शक्र देवेन्द्र देवराज के सोम (लोकपाल) महाराज की अग्रमहिषियाँ चार हैं। उनके नाम ये हैं-रोहिणी, मदना, चित्रा और सोमा । शेष लोकपालों की यावत् वैश्रमण की चार-चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं । ईशानेन्द्र देवेन्द्र देवराज के सोम (लोकपाल) महाराज की अग्रमहिषियाँ चार हैं । उनके नाम ये हैं-पृथ्वी, राजी, रतनी और विद्युत् । शेष लोकपालों की यावत्-वरुण की चार-चार अग्रमहिषियों के नाम भी ये ही हैं। सूत्र-२८८
गोरस विकृतियाँ चार हैं। उनके नाम ये हैं-१. दूध, २. दधि, ३. घृत और ४. नवनीत । स्निग्ध विकृतियाँ चार हैं उनके नाम ये हैं-तैल, घृत, चर्बी और नवनीत । महाविकृतियाँ चार हैं। उनके नाम ये हैं-मधु, मांस, मद्य और नवनीत सूत्र- २८९
कूटागार गृह चार प्रकार के हैं-गुप्त प्राकार से आवृत्त और गुप्त द्वार वाला, गुप्त-प्राकार से आवृत्त किन्तु अगुप्त द्वार वाला, अगुप्त-प्राकार रहित किन्तु गुप्त द्वार वाला है । अगुप्त-प्राकार रहित है और अगुप्त द्वार वाला है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का है । एक पुरुष गुप्त (वस्त्रावृत) है और गुप्तेन्द्रिय भी है । एक पुरुष गुप्त है किन्तु अगुप्तेन्द्रिय है । एक पुरुष अगुप्त है किन्तु गुप्तेन्द्रिय है । और एक पुरुष अगुप्त भी है और अगुप्तेन्द्रिय भी है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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