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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
सूत्र - ३०२
पुरुष वर्ग चार प्रकार का है । वह इस प्रकार है- एक पुरुष पहले भी कृश था और वर्तमान में भी कृश है। एक पुरुष पहले कृश था किन्तु वर्तमान में सुर्दढ़ शरीर वाला है। एक पुरुष पहले भी सुद्रढ़ शरीर वाला था किन्तु वर्तमान कृशकाय है । एक पहले सुद्रढ़ शरीर वाला था और वर्तमान में भी सुद्रढ़ शरीर वाला है ।
पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। एक पुरुष हीनमन वाला है और कृशकाय भी है। एक पुरुष हीनमन वाला है किन्तु सुद्रढ़ शरीर वाला है। एक पुरुष महामना है किन्तु कृशकाय है। एक पुरुष महामना भी है और सुद्रढ़ शरीर वाला भी है।
स्थान / उद्देश / सूत्रांक
पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। किसी कृशकाय पुरुष को ज्ञान दर्शन उत्पन्न हो जाता है किन्तु सुद्रढ़ शरीर वाले पुरुष को ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होता । किसी सुद्रढ़ शरीर वाले पुरुष को ज्ञान दर्शन उत्पन्न हो जाता है किन्तु किसी कृशकाय पुरुष को ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होता है। किसी कृशकाय पुरुष को भी ज्ञान दर्शन उत्पन्न हो जाता है और किसी सुद्रढ़ शरीर वाले पुरुष को भी ज्ञान दर्शन उत्पन्न हो जाता है। किसी कृशकाय पुरुष को भी ज्ञान दर्शन उत्पन्न नहीं होता और किसी सुद्रढ़ शरीर वाले पुरुष को भी ज्ञान दर्शन उत्पन्न नहीं होता ।
सूत्र - ३०३
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चार कारणों से वर्तमान में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के चाहने पर भी उन्हें केवल ज्ञान-दर्शन उत्पन्न नहीं होता । जो बार-बार स्त्री-कथा, भक्त-कथा, देश-कथा और राज कथा कहता है जो विवेकपूर्वक कायोत्सर्ग करके आत्मा को समाधिस्थ नहीं करता है। जो पूर्वरात्रि में और अपररात्रि में धर्मजागरण नहीं करता है । जो प्रासुक आगमोक्त और एषणीय अल्प-आहार नहीं लेता तथा सभी घरों से आहार की गवेषणा नहीं करता है ।
चार कारणों से वर्तमान में भी निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के चाहने पर उन्हें केवल ज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न होता है। जो स्त्रीकथा आदि चार कथा नहीं करते हैं। जो विवेकपूर्वक कायोत्सर्ग करके आत्मा को समाधिस्थ करते हैं । जो पूर्वरात्रि और अपररात्रि में धर्मजागरण करते हैं। जो प्रासुक और एषणीय अल्प आहार लेते हैं तथा सभी घरों से आहार की गवेषणा करते हैं।
सूत्र - ३०४
चार महाप्रतिपदाओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है। वे चार प्रतिपदाएं ये हैंश्रावण कृष्णा प्रतिपदा, कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा, मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा, वैशाख कृष्णा प्रतिपदा ।
चार संध्याओं में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है । वे चार संध्याएं ये हैं-दिन के प्रथम प्रहर में, दिन के अन्तिम प्रहर में रात्रि के प्रथम प्रहर में और रात्रि के अंतिम प्रहर में।
सूत्र - ३०५
लोकस्थिति चार प्रकार की है। वह इस प्रकार है-आकाश के आधार पर घनवायु और तनवायु प्रतिष्ठित है। वायु के आधार पर घनोदधि प्रतिष्ठित है । घनोदधि के आधार पर पृथ्वी प्रतिष्ठित है । और पृथ्वी के आधार पर त्रसस्थावर प्राणी प्रतिष्ठित है।
सूत्र - ३०६
पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। वह इस प्रकार है तथापुरुष जो सेवक, स्वामी की आज्ञानुसार कार्य करे। नो तथापुरुष-जो सेवक स्वामी की आज्ञानुसार कार्य न करे। सौवस्थिक पुरुष-जो स्वस्तिक पाठ करे और प्रधान पुरुष - जो सबका आदरणीय हो ।
पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। आत्मांतकर एक पुरुष अपने भव का अंत करता है दूसरे के भव का अंत नहीं करता । परांतकर-एक पुरुष दूसरे के भव का अंत करता है अपने भव का अंत नहीं करता । उभयांतकरी-एक पुरुष अपने और दूसरे के भव का अंत करता है। न उभयांतकर एक पुरुष अपने और दूसरे दोनों के भव का अंत नहीं
करता ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)" आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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