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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक पुरुष आर्य है (क्षेत्र से आर्य है) किन्तु अनार्य भी है (पापाचरण से अनार्य है) । एक पुरुष अनार्य है (क्षेत्र से अनार्य है) किन्तु आर्य भी है (आचरण से आर्य है), एक पुरुष अनार्य है (क्षेत्र से अनार्य है) और अनार्य है (आचरण से भी अनार्य है) । इसी प्रकार आर्यपरिणति, आर्यरूप, आर्यमन, आर्यसंकल्प, आर्यप्रज्ञा, आर्यदृष्टि, आर्यशीलाचार आर्यव्यवहार, आर्यपराक्रम, आर्यवृत्ति, आर्यजाति, आर्यभाषी, आर्यावभासी, आर्यसेवी, आर्यपर्याय, आर्यपरिवार और आर्यभाव वाले पुरुष के चार-चार भंग जानें। सूत्र- २९५
वृषभ चार प्रकार के हैं । जातिसंपन्न, कुलसंपन्न, बलसंपन्न और रूपसंपन्न हैं । पुरुषवर्ग भी चार प्रकार का है जातिसंपन्न यावत्-रूपसंपन्न ।
वृषभ चार प्रकार के हैं । १. एक जातिसंपन्न है किन्तु कुलसंपन्न नहीं है । २. एक कुलसंपन्न है किन्तु जातिसंपन्न नहीं है। ३. एक जातिसंपन्न भी है और कुलसंपन्न भी है। ४. एक जातिसंपन्न भी नहीं है और कुल-संपन्न भी नहीं है। इस प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भंग जानें।
वृषभ चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-एक जातिसम्पन्न हैं किन्तु बलसंपन्न नहीं, एक बलसंपन्न है किन्तु जातिसंपन्न नहीं है । एक जातिसंपन्न भी है और बलसम्पन्न भी है । एक जातिसम्पन्न भी नहीं है और बलसम्पन्न भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भंग जानें।
वृषभ चार प्रकार के हैं । एक जातिसंपन्न है किन्तु रूपसम्पन्न नहीं है । एक रूपसंपन्न है किन्तु जाति-सम्पन्न नहीं है । एक जातिसम्पन्न भी है और रूपसम्पन्न भी है । एक जातिसम्पन्न भी नहीं है और रूपसम्पन्न भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग के चार भेद जाने ।
कुलसम्पन्न और बलसम्पन्न वृषभ के चार भंग हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भंग हैं । कुलसम्पन्न और रूपसम्पन्न वृषभ के चार भंग हैं । इस प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भंग हैं । बलसम्पन्न और रूपसम्पन्न वृषभ के चार भंग हैं । इसी प्रकार पुरुष वर्ग के भी चार भंग हैं।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-भद्र, मंद, मृग और संकीर्ण । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का कहा गया है।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-एक भद्र है और भद्रमन वाला है । एक भद्र है किन्तु मंदमन वाला है एक भद्र है किन्तु मृग (भीरु) मन वाला है। एक भद्र है किन्तु संकीर्ण मन वाला है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का है।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-एक मंद किन्तु भद्रमन वाला है । एक मंद है और मंदमन वाला है। एक मंद है किन्तु मृग (भीरु) मन वाला है । एक मंद है किन्तु संकीर्ण (विचित्र) मन वाला है । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का कहा गया है।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं-एक मृग (भीरु) है और भद्र (भीरु) मन वाला है । एक मृग है किन्तु मंद मन वाला है । एक मृग है और मृग मन वाला भी है । एक मृग है किन्तु संकीर्ण मन वाला है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का है।
हाथी चार प्रकार के हैं । वे इस प्रकार के हैं-एक संकीर्ण है किन्तु भद्रमन वाला है । एक संकीर्ण है किन्तु मंदमन वाला है। एक संकीर्ण है किन्तु मृगमन वाला है । इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का कहा गया है। सूत्र-२९६
मधु की गोली के समान पिंगल नेत्र, क्रमशः पतली सुन्दर एवं लम्बी पूँछ, उन्नत मस्तक आदि से सर्वाङ्ग सुन्दर भद्र हाथी धीर प्रकृति का होता है। सूत्र-२९७
चंचल, स्थूल एवं कहीं पतली और कहीं मोटी चर्म वाला स्थूल मस्तक, पूँछ, नख, दाँत एवं केश वाला तथा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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