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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र- २४३
श्रमण भगवान महावीर से लेकर तीसरे युगपुरुष पर्यन्त मोक्षगमन कहा गया है । मल्लिनाथ भगवान ने तीन सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर प्रव्रज्या धारण की थी। इसी तरह पार्श्वनाथ भगवान ने भी की थी। सूत्र - २४४
श्रमण भगवान महावीर ने जिन नहीं किन्तु जिन के समान, सर्वाक्षरसन्निपाती सब भाषाओं के वेत्ता और जिन के समान यथातथ्य कहने वाले चौदह पूर्वधर मुनियों की उत्कृष्ट सम्पदा संख्या तीन सौ थी। सूत्र- २४५
तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती थे, यथा-शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ । सूत्र- २४६
ग्रैवेयक विमान प्रस्तर समूह तीन हैं, यथा-अधस्तनौवेयक विमानप्रस्तर, मध्यमग्रैवेयक विमानप्रस्तर, उपरितनग्रैवेयक विमानप्रस्तर । अधस्तन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-अधस्तनाधस्तन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, अधस्तनोपरितन ग्रैवेयकविमान प्रस्तर । मध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-मध्यमाधस्तन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, मध्यममध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, मध्यमोपरितन ग्रैवेयक विमानप्रस्तर । उपरितन ग्रैवेयक विमान प्रस्तर तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथाउपरितनअधस्तनौवेयक विमानप्रस्तर, उपरितनमध्यम ग्रैवेयक विमानप्रस्तर, उपरितनोपरितनग्रैवेयक विमानप्रस्तर सूत्र- २४७
जीवों ने तीन स्थानों में अर्जित पुद्गलों को पापकर्म रूप में एकत्रित किए, करते हैं और करेंगे, यथा-स्त्रीवेदनिवर्तित, पुरुषवेदनिवर्तित, नपुंसकवेदनिवर्तित । पुद्गलों का एकत्रित करना, वृद्धि करना, बंध, उदीरणा, वेदन तथा निर्जरा का भी इसी तरह कथन समझना चाहिए। सूत्र - २४८
तीन प्रदेशी स्कन्ध यावत्-त्रिगुण रूक्ष पुद्गल अनन्त कहे गए हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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