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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक यावत् लम्बाई-चौड़ाई, ऊंचाई, संस्थान और परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करने वाले हैं, उनके नामलघुहिमवानकूट और वैश्रमणकूट । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गए हैं जो परस्पर अति तुल्य हैं उनके नाम-महाहिमवनकूट और वैडूर्यकूट । इसी तरह निषध वर्षधर पर्वत पर दो कूट कहे गए हैं जो अति तुल्य हैं-यावत् उनके नाम । निषधकूट और रुचकप्रभकूट । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में नीलवान वर्षधर पर्वत पर दो कूट हैं जो अति तुल्य हैं-यावत् उनके नाम । नीलवंतकूट और उपदर्शकूट । इसी तरह तरह रुक्मिकूट वर्षधर पर्वत पर दो कूट हैं यावत्-उनके नाम । रुक्मिकूट और मणिकांचनकूट । इसी तरह शिखरी वर्षधर पर्वत पर दो कूट हैं जो यावत्-उनके नाम, शिखरीकूट और तिगिच्छकूट । सूत्र-८८
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में लघुहिमवान् और शिखरी वर्षधर पर्वतों में दो महान् द्रह हैं जो अति-सम, तुल्य, अविशेष, विचित्रतारहित और लम्बाई-चौड़ाई-गहराई, संस्थान एवं परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करने वाले हैं, उनके नाम । पद्म द्रह और पुण्डरीक द्रह । वहाँ महाऋद्धि वाली-यावत् पल्योपम की स्थिति वाली दो देवियाँ रहती हैं, उनके नाम । श्री देवी और लक्ष्मी देवी । इसी तरह महाहिमवान् और रुक्मि वर्षधर पर्वतों पर दो महाद्रह हैं जो अतिसमाह हैं-यावत् उनके नाम, महापद्म द्रह और महापुण्डरिक द्रह । देवियों के नाम । ह्री देवी और वृद्धि देवी । इसी तरह निषध और नीलवान पर्वतों में तिगिच्छ द्रह और केसरी द्रह । देवियाँ धृति और कीर्ति ।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के महापद्म द्रह में दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं, उनके नाम । रोहिता और हरिकान्ता । इसी तरह निषध वर्षधर पर्वत के तिगिच्छ द्रह में से दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं, नाम । हरिता और शीतोदा । जम्बूद्वीपवर्ती मेरुपर्वत के उत्तर में नीलवान् वर्षधर पर्वत के केसरी द्रह में से दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं, उनके नाम । शीता और नारीकान्ता । इसी तरह रुक्मि वर्षधर पर्वत के महापुण्डरीक द्रह में से दो महानदियाँ प्रवाहित होती हैं, नाम । नरकान्ता और रूप्यकुला।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण भरत क्षेत्र में दो प्रपातद्रह हैं जो अतिसमान हैं यावत्-उनके नाम । गंगाप्रपात द्रह और सिन्धुप्रपात द्रह । इसी तरह हैमवतवर्ष में दो प्रपात द्रह हैं जो बहुसमान हैं यावत्-उनके नाम । रोहितप्रपात द्रह और रोहितांश-प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में हरिवर्ष क्षेत्र में दो प्रपात द्रह हैं जो अति समान हैं यावत्-उनके नाम । हरि पर्वत द्रह और हरिकान्त प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में महाविदेह वर्ष में दो प्रपात द्रह हैं जो अतिसमान हैं यावत्-उनके नाम । शीताप्रपात द्रह और शीतोदाप्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रम्यक्वर्ष में दो प्रपात द्रह हैं जो बहुसमान हैं यावत्-उनके नाम । नरकान्त प्रपात द्रह और नारीकान्त प्रपात द्रह । इसी तरह हेरण्यवत में दो प्रपात द्रह हैं उनके नाम । सुवर्ण कुल प्रपात द्रह और रूप्यकुल प्रपात द्रह । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में ऐरवत वर्ष में दो प्रपात द्रह हैं और अतिसमान हैं यावत्उनके नाम । रक्तप्रपात द्रह और रक्तावतीप्रपात द्रह।
जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में भरतवर्ष में दो महानदियाँ हैं जो अतिसमान हैं । यावत्-उनके नाम । गंगा और सिन्धु । इसी तरह जितने प्रपात द्रह कहे गए हैं उतनी नदियाँ भी समझ लेनी चाहिए यावत्-ऐरवत वर्ष में दो महानदियाँ हैं जो अतिसमान तुल्य हैं यावत्-उनके नाम । रक्ता और रक्तवती । सूत्र- ८९
जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुषमदुःषम नामक आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम का था। इसी तरह इस अवसर्पिणी के लिए भी समझना चाहिए । इसी तरह आगामी उत्सर्पिणी के यावत्-सुषमदुःषम आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम होगा । जम्बूद्वीपवर्ती भरत-ऐरवत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी के सुषम नामक आरे में मनुष्य दो कोस की ऊंचाई वाले थे। तथा दो पल्योपम की आयु वाले थे। इसी तरह इस अवसर्पिणी में यावत्-आयुष्य था । इसी तरह आगामी उत्सर्पिणी में यावत्-आयुष्य होगा । जम्बूद्वीप में भरत और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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