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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-१६७
तीन प्रकार की शैक्ष-भूमि कही गई हैं, यथा उत्कृष्ट छ: मास, मध्यम चार मास, जघन्य सात रात-दिन ।
तीन स्थवीर भूमियाँ कही गई हैं, यथा-जातिस्थविर, सूत्रस्थविर और पर्यायस्थविर । साठ वर्ष की उम्र वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ जातिस्थविर है, स्थानांग समवायांग को जानने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सूत्रस्थविर है, बीस वर्ष की दीक्षा वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ पर्यायस्थविर है। सूत्र - १६८
तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं । यथा, सुमना (हर्षयुक्त) दुर्मना (दुःख या द्वेषयुक्त) नो-सुमना-नो-दुर्मना (समभाव रखने वाला)।
तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-कितनेक किसी स्थान पर जाकर सुमना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाकर दुर्मना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाकर नो-सुमना-नो-दुर्मना होते हैं।
तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-कितनेक किसी स्थान पर जाता हूँ ऐसा मानकर सुमना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाता हूँ, ऐसा मानकर दुर्मना होते हैं, कितनेक किसी स्थान पर जाता हूँ ऐसा मान कर नो-सुमना-नो-दुर्मना होते हैं । इसी तरह कितनेक जाऊंगा ऐसा मानकर सुमना होते हैं इत्यादि पूर्ववत् । तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-कितनेक नहीं जाकर सुमना होते हैं, इत्यादि । तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा- नहीं जाता हूँ ऐसा मानकर सुमना होते हैं इत्यादि । तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा- नहीं जाऊंगा ऐसा मानकर सुमना होते हैं इत्यादि । इसी तरह आकर कितनेक सुमना होते हैं इत्यादि । आता हूँ ऐसा मानकर कितनेक सुमना होते हैं इत्यादि । आऊंगा ऐसा मानकर कितनेक सुमना होते हैं इत्यादि । इस प्रकार इस अभिलापक से सूत्र - १६९
जाकर, नहीं जाकर । खड़े रहकर-खड़े नहीं रहकर । बैठकर, नहीं बैठकर । सूत्र-१७०
मारकर, नहीं मारकर । छेदकर, नहीं छदेकर । बोलकर, नहीं बोलकर । कहकर, नहीं कहकर । सूत्र-१७१
देकर, नहीं देकर । खाकर, नहीं खाकर । प्राप्त कर, नहीं प्राप्त कर । पीकर, नहीं पीकर । सूत्र- १७२
सोकर, नहीं सोकर । लड़कर, नहीं लड़कर । जीतकर, नहीं जीतकर । पराजित कर, नहीं पराजित कर । सूत्र- १७३
__ शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श । इस प्रकार एक-एक के तीन आलापक कहने चाहिए, यथा कितने शब्द सूनकर सुमना होते हैं । कितनेक सूनता हूँ यह मानकर सुमना होते हैं। कितनेक सूनुंगा यह मानकर सुमना होते हैं । इसी प्रकार कितनेक नहीं सूना यह मानकर सुमना होते हैं । कितनेक नहीं सुनता हूँ यह मानकर सुमना होते हैं। कितनेक नहीं सूनूँगा यह मानकर सुमना होते हैं । इस प्रकार रूप, गंध, रस और स्पर्श प्रत्येक में छः छः आलापक कहने चाहिए। सूत्र - १७४
शीलरहित, व्रतरहित, गुणरहित, मर्यादा-रहित और प्रत्याख्यान-पोषधोपवास रहित के तीन स्थान गर्हित होते हैं । उसका इहलोक जन्म गर्हित होता है, उसका उपपात निन्दित होता है, उसके बाद के जन्मों में भी वह निन्दनीय होता है।
सुशील, सुव्रती, सद्गुणी, मर्यादावान और पौषधोपवास प्रत्याख्यान आदि करने वाले के तीन स्थान प्रशंसनीय होते हैं, यथा-उसकी इस लोक में भी प्रशंसा होती है, उसका उपपात भी प्रशंसनीय होता है उसके बाद के जन्म में भी उसे प्रशंसा प्राप्त होती है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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