________________
आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-नाम पुरुष, स्थापना पुरुष और द्रव्य पुरुष । तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-ज्ञानपुरुष, दर्शनपुरुष और चारित्रपुरुष । तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-वेदपुरुष, चिन्ह पुरुष और अभिलाप पुरुष ।
तीन प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा-उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष और जघन्य पुरुष । उत्तम पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-धर्म पुरुष, भोग पुरुष और कर्म पुरुष । धर्म पुरुष अर्हन्त देव हैं, भोग पुरुष चक्रवर्ती हैं, कर्म पुरुष वासुदेव हैं । मध्यम पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-उग्र वंशी, भोग वंशी और राजन्य वंशी । जघन्य पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-दास, भृत्य और भागीदार । सूत्र - १३७
मत्स्य (मच्छ) तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा अण्डे से उत्पन्न होने वाले, पोत से (बिना किसी आवरण के) पैदा होने वाले, सम्मूर्छिम (संयोग के बिना) स्वतः उत्पन्न होने वाले । अण्डज मत्स्य तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री मत्स्य, पुरुष मत्स्य और नपुंसक मत्स्य । पोतज मत्स्य तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक।
पक्षी तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-अण्डज, पोतज और सम्मूर्छिम । अण्डज पक्षी तीन प्रकार के हैं, यथास्त्री, पुरुष और नपुंसक । पोतज पक्षी तीन प्रकार के हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक ।
इस अभिलापक से उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प का भी कथन करना चाहिए। सूत्र-१३८,१३९
तीन प्रकार की स्त्रियाँ कही गई हैं, यथा-तिर्यंच योनिक स्त्रियाँ, मनुष्य योनिक स्त्रियाँ, देव-स्त्रियाँ । तिर्यंच स्त्रियाँ तीन प्रकार की कही गई हैं, यथा-जलचर स्त्री, स्थलचर स्त्री, खेचर स्त्री । मनुष्य-स्त्रियाँ तीन प्रकार की हैं, यथा-कर्मभूमि में पैदा होने वाली, अकर्मभूमि में पैदा होने वाली, अन्तर्वीप में उत्पन्न होने वाली।
पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-तिर्यंचयोनिक पुरुष, मनुष्ययोनिक पुरुष, देव पुरुष । तिर्यंचयोनिक पुरुष तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-जलचर, स्थलचर और खेचर | मनुष्ययोनिक पुरुष तीन प्रकार के हैं, यथाकर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले, अकर्मभूमि में उत्पन्न होने वाले, अन्तर्वीपों में पैदा होने वाले।
नपुंसक तीन प्रकार के हैं, नैरयिक नपुंसक, तिर्यंचयोनिक नपुंसक, मनुष्य नपुंसक । तिर्यंचयोनिक नपुंसक तीन प्रकार के हैं, यथा-जलचर, स्थलचर और खेचर । मनुष्य नपुंसक तीन प्रकार के हैं, यथा-कर्मभूमिज, अकर्म भूमिज और अन्तर्दीपिक।
तिर्यंच योनिक तीन प्रकार के कहे गए हैं, यथा-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । सूत्र-१४०
नारक जीवों की तीन लेश्याएं कही गई हैं, यथा-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या।
असुरकुमारों की तीन अशुभ लेश्याएं कही गई हैं, यथा-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या । इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए । इसी प्रकार पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीवों की लेश्या समझना चाहिए । इसी प्रकार तेजस्काय और वायुकाय की लेश्या भी जाननी चाहिए। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों के भी तीन लेश्याएं नारक जीवों के समान कही गई हैं।
पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के तीन अशुभ लेश्याएं कही गई हैं । यथा-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या और कापोत लेश्या । पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के तीन लेश्याएं शुभ कही गई हैं। तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । इसी प्रकार मनुष्यों के भी तीन लेश्या समझना ।
असुरकुमारों के समान वाणव्यन्तरों के भी तीन लेश्या समझनी चाहिए।
वैमानिकों के तीन लेश्याएं कही गई हैं, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या । सूत्र-१४१
तीन कारणों से तारे अपने स्थान से चलित होते हैं, यथा-वैक्रिय करते हुए, विषय-सेवन करते हुए, एक स्थान
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 29