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आचा०
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पांच समितिथी बनेलो हवे पछी कद्देवाता शुभ अशुभ कर्मनुं स्वरूप जाणे एटले अंधपणुं वहेरापणं मुंगापणुं काणापणुं अने कुंटपणुं विगेरे कर्मनांज फळ छे. ते जीवोमां साक्षात् जोइने पोते समजे, के हुं दुःख वीजाने आपीश, तो ते मने पण भोगववुं पडशे ते खुलासावार कहे छे. हवे समिनिनुं वर्णन कहे छे.
सम् उपसर्ग इ. धातु अने ति प्रत्यय लागनाथी समिति शब्द बन्यो छे. अर्थात् सम्यक् वर्तन ते समिति छे, तेना पांच भेद छे. (१) इर्या समिति ते जोइ विचारी पगलं भरवानुं छे, जेथी बोजा जीवोनी तथा पोतानी रक्षा थाय, (जोइने चालतो, पग नीचे कीडी विगेरे मरे नही, तेम टोकर पण न लागे) आ अहिंसा नामना पहेला महाव्रतने टेको आपनार छे. तेथी अहिंसा बरोबर पळे छे. (२) भाषा समिति ते असत्य अहितकारक वचन रोकवा माटे छे, अर्थात् साधुए वीजुं महाव्रत पाळबुं जोइ विचारीने बोलवु . तथा (३) एपणा समिति ते साधुने कोइनुं पण चोरीने के पूछया बिना कांइ पण न लें ते त्रीजुं महाव्रत पाळवा माटे छे, एटले निर्दोष भोजन विगेरे दिवसना प्रकाशमां मालीकनी रजा लइ वापरवानुं छे. वाकीनी वे समितिओ. (४) आदान- एटले वस्तु लेवी| मुकवी ते समिति तथा [५) उत्सर्ग - एटले शरीरमांथी के मकान विगेरेमांथी नीकळतो मळ विगेरे योग्य स्थाने नांखवो के जेथी बीजाने पीडा न थाय, ते वधा महाव्रतमां सर्वोत्तम अहिंसा नामना पहेला महाव्रतनी सिद्धि माटे छे, आ प्रमाणे पंच महाव्रतो मेळवीने पांच समिति पाळता साधुने बीजा जीवानुं मुख विगेरे देखाय छे, अथवा जे रीते पोते वीजानुं भलुं चाहनारो थाय छे ते सूत्र |वडेज बतावे छे अंधपणुं विगेरे जे जे विरूप रूपोमां संसारी जीवो संसारमां भ्रमणा करता घणी अवस्थाओ भोगवे छे. ते बतावे छे.
सूत्रम्
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