Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharang Sutra Part 02
Author(s): Bhadrabahu, Shilankacharya
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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2315251959-
०८५॥
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ज्ञाननो भागी थाय, श्रद्धा अने.चारीत्रमा स्थिर चित्तवाळो थाय, आवां कारणोथी जेओ गुरुकुळवास नथी मुक्ता, तेवा चिा० पुरुषोने धन्य छे. आवी ज्ञाननी भावना जाणवी.' ' . हवे चारित्रनी भावना कहे ...
साहुमहिंसाधम्मो सच्चमदत्तविरई य बंभ च । साहु परिग्गडविरई साहु तो बारसंगो य ।। ३३८॥ । 15 वेरग्गमप्पमाओं एगत्ता (ग्गे) भावणा य परिसंग । इय चरणमणुगयाओ भणिया इत्तो तवो वुच्छं ।। ३३९॥ . ॥१०८५॥ ६ अहिंसादि लक्षणवाळो जैनधर्म श्रेष्ठ छे. आ पहेला व्रतनी भावना छे तथा आ जिनेश्वर वचनमा निर्मळ सत्य छे तेवू बीजे नथी. आ वीजा महाव्रतनी भावना छे, त्रीजा व्रतनी भावनामां अहीं पारको माल न लेवातुं बरोबर बतान्यु छे, चोथा महाव्रतनी भावनामा ब्रह्मचर्यनी नववाडो पाळवा- अहीं वताव्यु छे, पांचमां महाव्रतनी भावनामां जरुरनां उपकरण सिवाय परिग्रहन त्यागपणुं 8 सर्वोत्तम जिन वचनमां वताव्यु छे
बार प्रकारनो तप पण अहीं इंद्रियोना विजय माटे तथा कर्मो खपाववा माटे अहीं वताब्यो छे.
वैराग्य भावनामा संसारनां देखीतां सुखो परिणामे तथा अंतरदृष्टिए जोतां दुःखरुप छे माटे विष्टा समान जाणीने दूरथी| 18/त्यागवा योग्य छे एम भावq. ___अप्रमाद भावनामां जाणवू के जे जीवो दारु विगेरेना व्यसनमां के क्रोधादि करीने के इंद्रियोने वश था केवां दुःख भोगवे || छे ते विचारी पांचे प्रमादोने छोडवानुं अहीं छे. एकाग्रभावनामां आ गाथा विचारवी.
" एक्को मे सासओ अप्पा, णाणदंसणसंजुभो । सेसा मे बहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा ॥१॥"
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--कवाद

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